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हर बार उसे ही चूना

उसका चुनाव हर बार किया गया 
पर अपनाने के लिए नहीं 
बार-बार त्यागी गई वो 
कभी गर्भनाल की जमीन से 
तो कभी सप्तपदी के फेरों में 
पर प्रेम के चुनाव में जब वो  हार गई 
तब उस औरत ने त्याग दिया
इस संसार का मोह 
निष्कासित कर दी उसने प्रेम की परिभाषा
और दडित किया खुद से खुद को
और वंचित रखे वो तमाम
सपने जो कभी प्रेम के नाम पर
उसके आंखों में भर दिये थे
जो आज शैन शैन
आंसू बन रक्त बहने की  
पीड़ा दे रहे थे

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