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प्रेम

मै आप से जो कहती हूँ 
वो असल में मुझे
कहना ही नहीं होता है 
जो कहना होता है 
उसके लिए 
कोई भाषा ही नहीं गढी़ हैं
अब तक न ईश्वर ने न मनुष्यों ने

मेरे इस जन्म से अजन्मे
प्रेम के लिए 
तुम्हारे उस संसार में 
कहीं पर भी तिलभर जगह नहीं है
पर मेरे हृदय में बसा प्रेम 
सारा ब्रह्मांड व्याप्त कर सकता है 

रंग कौन सा है इस प्रेम का 
देश कौन सा है इस प्रेम का 
और नाम  ? 

हमने साथ-साथ नहीं सांझा की
कोई गली कोई सड़क 
ना कोई शहर ना गाँव
हवा का ना रंग ना रूप 
आसमान का कोई छोर 
ना ओस की बूंदों का कोई घर

इसलिए नहीं कह सकती 
कभी जो तुमसे कहना चाहती हूं
हमारे प्रेम की संवादोंकी भाषा
गढ़ने में ईश्वर भी असहाय हैं

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

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