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प्रेम

मै आप से जो कहती हूँ 
वो असल में मुझे
कहना ही नहीं होता है 
जो कहना होता है 
उसके लिए 
कोई भाषा ही नहीं गढी़ हैं
अब तक न ईश्वर ने न मनुष्यों ने

मेरे इस जन्म से अजन्मे
प्रेम के लिए 
तुम्हारे उस संसार में 
कहीं पर भी तिलभर जगह नहीं है
पर मेरे हृदय में बसा प्रेम 
सारा ब्रह्मांड व्याप्त कर सकता है 

रंग कौन सा है इस प्रेम का 
देश कौन सा है इस प्रेम का 
और नाम  ? 

हमने साथ-साथ नहीं सांझा की
कोई गली कोई सड़क 
ना कोई शहर ना गाँव
हवा का ना रंग ना रूप 
आसमान का कोई छोर 
ना ओस की बूंदों का कोई घर

इसलिए नहीं कह सकती 
कभी जो तुमसे कहना चाहती हूं
हमारे प्रेम की संवादोंकी भाषा
गढ़ने में ईश्वर भी असहाय हैं

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