रिश्तों के चेहरे होते हैं ये कौन कहता है
हमने तो पीठ ही देखी हैं अक्सर
गर्भ में सीचें पाने का भी
हिसाब मांगती माये देखी हैं अक्सर
लिप्सा के भट्टी में कपास सम
रिश्तों को जलते देखा है अक्सर
जिव्हा पर मीठी भाषा रखने वालों के
ह्रदय में तलवारों की तान सुनी है हमने अक्सर
मकानों को तो बाढ़, तूफानों में बहते देखा हैं
रिश्तों के अविश्वास में घर को गीरते देखा हैं अक्सर
सभ्यता के पैरों के जूते को
असभ्यता के पाषाण पर खीसतें देखा है हमने अक्सर
पतन की पराकाष्ठा से पुनः धरा के
निर्माण के सपने आता है मुझे अक्सर
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