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नदी का दर्द

 हर पार्वती के हिस्से 
नहीं होते शिव 
फिर भी वो अर्द्धनारीश्वर के रूप में
विचरती रहती है इस धरा पर !

उसे उड़ने के लिए तो कहा जाता था 
पर उतनी ही ताकत से
उसके पंखों को भी खींचा जाता था

उसे सिंप की तरह 
संमदर में उन्मुक्त तो छोड़ा जाता था
लेकिन मोती की तरह
चमकने नहीं दिया जाता था

मेरे तकिये ने सहेजा है
मेरे जख्मों का नमक
और इन दिवारों ने
दबा रखी है
मेरी ह्रदय की हुंकार को

आसान है जानेवाले के लिए
पर पिछे जो अकेला छुटता है
वो अपने रक्त रंजित हाथों से
खुद को खुद के पास
लौटा देता है

तूमारा जाना
महज भीड़ में से
एक चेहरा गायब होना नहीं था
बल्कि मेरे शहर का खाली होना था


कुछ घरों में औरतें
जलती है
सुबह से शाम तक
और रात होने पर
शरीर पर उग आये फफोले को
धो देती हैं नमक के पानी से

तुम्हारी अधूरी बातें
तुम्हारा अधूरा स्पर्श
मेरी अधूरी ख्वाहिशे
शून्य से लेकर
विरामतक
मेरा हमसफ़र है



आंखों के किनारे पर
एक बून्द आंसू छिपा रहता है
मेरे ह्रदय के साथ हर क्षण
मौन संवाद करता रहता है

डायरी के अंतिम पन्ने पर
लिखी एक कविता हो तुम
बया न कर पाऊंगा मैं कभी
वो दर्द हो तुम।


कभी कभी 
ये ज़िन्दगी भी 
जमीन से टूटे हुए 
जड़ की तरह ही लगती हैं
बिख़र के संभलना 
हर बार
कहां मुमकिन होता है

टिप्पणियाँ

  1. आसान है जानेवाले के लिए
    पर पिछे जो अकेला छुटता है
    वो अपने रक्त रंजित हाथों से
    खुद को खुद के पास
    लौटा देता है
    सही कहा...
    बहुत सारे मर्म समेटे लाजवाब सृजन ।
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

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