समंदर ने पानी उधार लिया है
नदियों से
जैसे उधार लेते हैं
कुछ एक पिता बेटियों से
उनकी संपत्ति
और अधिकार के साथ चलाते हैं
पितृसत्ता का साम्राज्य
नदियाँ विलुप्त हो रही हैं
समंदर को भविष्य की बंजरता का
आभास फिर भी नहीं हो रहा है
घर के भीतर जभी पुकारा मैने उसे प्रत्येक बार खाली आती रही मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब सामने वाली कुर्सी खाली रही हमेशा देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है जहाँ से लौटना असभव बना है अब
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