अब कुछ दिन
बोलने से बचना चाहता हूं मैं
अब सुननी है सबकी ध्वनियाँ
और सीखनी है बात के पीछे की असल बात
इस कला को सीखे बिना
मैं नहीं समझ सकता हुं
दुनिया का यह बाजार
पहाड़ के पीछे भी एक पहाड़ होता है
नदी के नीचे भी एक नदी होती हैं
वैसे ही मनुष्य के चेहरे के
पीछे भी एक चेहरा होता है
जुड़वां चेहरे का
गणित सीखना है अभी बाकी
खुली मुट्ठी सिर्फ भ्रम होता है
उसके भीतर भी एक बंद मुट्ठी होती हैं
बाजार इंद्रधनुष्य के रंगों का विज्ञापन छाप रहा है
और सूरज के रोशनी को डिब्बे में
भरकर बेचने का भ्रम पैदा कर रहा है
और ऐसे समय में यदि मुझे अपने होने को बचाये रखना है
तो कछुए के पैरों से भुमि को नापना होगा
किनारे पर खड़े होकर अब बाजार का रुख़ समझना होगा
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