सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

इस बाजार का रुख समझना होगा

अब कुछ दिन 
बोलने से बचना चाहता हूं मैं 

अब सुननी है सबकी ध्वनियाँ 
और सीखनी है बात के पीछे की असल बात 
इस कला को सीखे बिना 
मैं नहीं समझ सकता हुं 
दुनिया का यह बाजार 

पहाड़ के पीछे भी एक पहाड़ होता है
नदी के नीचे भी एक नदी होती हैं
 वैसे ही मनुष्य के चेहरे के 
पीछे भी एक चेहरा होता है 

जुड़वां चेहरे का 
गणित  सीखना है अभी बाकी 

खुली मुट्ठी सिर्फ भ्रम होता है 
उसके भीतर भी एक बंद मुट्ठी होती हैं 
बाजार इंद्रधनुष्य के रंगों का विज्ञापन छाप रहा है 
और सूरज के रोशनी को डिब्बे में 
भरकर बेचने का भ्रम पैदा कर रहा है

और ऐसे समय में यदि मुझे अपने होने को बचाये रखना है
तो कछुए के पैरों से भुमि को नापना होगा
किनारे पर खड़े होकर अब बाजार का रुख़ समझना होगा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

उसे हर कोई नकार रहा था

इसलिए नहीं कि वह बेकार था  इसलिए कि वह  सबके राज जानता था  सबकी कलंक कथाओं का  वह एकमात्र गवाह था  किसी के भी मुखोटे से वह वक्त बेवक्त टकरा सकता था  इसीलिए वह नकारा गया  सभाओं से  मंचों से  उत्सवों से  पर रुको थोड़ा  वह व्यक्ति अपनी झोली में कुछ बुन रहा है शायद लोहे के धागे से बिखरे हुए सच को सजाने की  कवायद कर रहा है उसे देखो वह समय का सबसे ज़िंदा आदमी है।