इंसानी उंगलियाँ पर
केंकटस के जंगल उग रहे है
और धरा का सीना
तितलियों के मृतदेह से
सना पडा़ है
बिल्ली के माथे पर
दिया रखकर
दुनिया में उजाले का
भ्रम्ह पैदा किया जा रहा है
बुद्ध के उपदेश
उब रहे है दिवारों पर
और प्रयोगशाला में
बारुद के रसायन
घोले जा रहे है
पाठशालाओं की
इमारतें जितनी
महंगी होती जा रहीं हैं
उतने ही तेजी से
नैतिकता गर्त में जा रही है
संभ्यता की सड़के
निर्जन होती जा रही है
और असभ्यता के
महामार्ग रोज
तारकोल से चमकाये
जा रहे हैं
समय की जेब
स्वार्थियों के
कमीज पर इंसानी
लार से चिपकाई
जा रही है
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