प्रेम पुरा भी नहीं और अधूरा भी नहीं
अधिकार न रहने पर भी
पूरे अधिकार के साथ छलता रहा बरसों तक
भरोसे की गठरी रीत होती गई पर
फिर भी क्षमा का दान मै क्यों देती गई ?
मेरी रातें मेरी उम्र से भी लंबी होती गई
बिस्तरों पर सिलवटों की गिनती कम और
देह पर के जख्म़ो का गणित अधिक आय मेरे हिस्से
मेरा घर घर नहीं था एक मकान था
जहाँ बेमानी की मक्खियां भिनभिनाती थी
और मैं उन दिनों कहीं कहीं दिनों तक
अपने मृत्यु की याचना करती
संसार की सर्वश्रेष्ठ और खूबसूरत चीज थी मेरे लिए मृत्यु
आज सोचती हूं दहलीज पार करना
इतना कठिन था क्या उन दिनों
हा बाहर पितृसत्ता का वृक्ष इतना घना था
की उसके सायें में पौधे का पनपना असंभव था
और एक दिन मैंने बचपन में
दुपट्टे में बांधे मेरे खूबसूरत और
छोटे-छोटे सपनों की गांठों को खोल दिया
एक कोमल सा जुगनू अपनी हथेलियों पर रख
अपने सफर की शुरुआत कर दी
आज इतने लंबे सफर के बाद लगता है
दोषी तुम नहीं थे वे थे दोषी
जिन्होंने मेरे गर्भनाल की जमी को
मुझे मेरा कहने नहीं दिया कभी
दोष उन कक्षाओं के सीख का भी था
जहाँ यह सीखाया नहीं कभी
कहानी का राजकुमार केवल प्यार ही नहीं
बेइमानी भी करता है कभी कभी
प्रेम मेरे हिस्से उतना ही आया
जितना जाल में फंसे मछली के हिस्से जीवन
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