एक समय के बाद
सब कुछ खत्म करने की
जिद्द करता है मन
चाहे वो रिश्ता कितना भी
खास क्यों ना हो
पर लाख कोशिशों के
बावजूद बचा रहता है
उस प्रथम मुलाकात में
हथेलियों के बेजान रेखाओं
के बीच बचा तुम्हारा स्पर्श
मानों अंतिम रोटी पकने के बाद
बची रहती हैं चुल्हे के देह पर
उस रोटी की महक
जैसे समंदर में जाल में फंसी मछली का
अंतिम आंसू बहता रहता है
कहीं-कहीं दिनों तक समंदर के सिने पर
जैसे बीज प्रस्तर पर गिरने के बाद भी
बची रहती हैं अंकुरित होने की संभावनाएँ
पर स्विकार और अस्वीकार के बीच
बार-बार गुम होती तुम्हारी इस भाषा से
मेरे मन के माथे पर सिलवटें पड़ गई है
और यह लौटना चाहता है अपने एकांत में
पर तुम बचे रहोगे मेरे बालकनी में स्थित
चांद और तुलसी की दूरियों के बीच
तुम बचे रहोगे मेरे शहर के ग्रंथालय के
उन अलमारियों में जहांँ से पढ़ी थी
मैंने कविताएंँ विस्थापन के दर्द की
रोज सुबह मेरी अलमारी में
साड़ी की जगह खाली देख
मुझे याद आएगा लाल रंग
हर किसी के हिस्से नहीं आता है कभी..
रोज सुबह मेरी अलमारी में
जवाब देंहटाएंसाड़ी की जगह खाली देख
मुझे याद आएगा लाल रंग
हर किसी के हिस्से नहीं आता है कभी..
अप्रितम और पावन प्रेम को समर्पित कविता की प्रशंसा के लिए शब्द बोने पड़ते हैं
वाह अंतस की घराई को नापती पंक्तितियों को सल्यूट
धन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंएक समय के बाद...
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो सकता है
गहन चिंतन
सादर