सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एक कविता पर सच

तुम नहीं भूलते हो
जरूरी और कीमतीं चीजों को
ना ही तुम रखते हो
उन्हें इधर-उधर

पर अक्सर तुम
गैरजरूरी चीजों को
या फिर जिसमें न हो कोई लाभ
उन्हें फेंक देते हो इधर उधर

या फिर सालों पड़ी रहती हैं
वो चीजें धूल के परतों के भीतर
चाहे  सामान हो या कोई इंसान

पर तमाम भूली हुई चीजें, रिश्ते
तुम्हारी तरफ देखते रहती हैं
तुम्हारी हर हरकत पर
उनकी होती है नजर

इस जहांन में सबसे ज्यादा
वही चीजें या रिश्ते तुम्हें याद करती हैं
जिन्हें तुमने बहुत कम कीमती
या फिर गैरजरूरी समझा हो
और एक दिन समय के पहले ही
कुछ रिश्ते, चीजें अलविदा कह जाते हैं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

उसे हर कोई नकार रहा था

इसलिए नहीं कि वह बेकार था  इसलिए कि वह  सबके राज जानता था  सबकी कलंक कथाओं का  वह एकमात्र गवाह था  किसी के भी मुखोटे से वह वक्त बेवक्त टकरा सकता था  इसीलिए वह नकारा गया  सभाओं से  मंचों से  उत्सवों से  पर रुको थोड़ा  वह व्यक्ति अपनी झोली में कुछ बुन रहा है शायद लोहे के धागे से बिखरे हुए सच को सजाने की  कवायद कर रहा है उसे देखो वह समय का सबसे ज़िंदा आदमी है।