जब जब मैंने देह पर होते
निगाहों के बलात्कार का विरोध किया
तब तब मेरे श्रम को अनदेखा किया गया
हाट बाजारों में भीड़ के आड़ में
जहाँ पुरुषों का वर्चस्व रहा हमेशा से
वहाँ अर्धनारीश्वरी के रूप में
भीड़ को चीरती रही
और मेरे देह पर रेंगने की मंशा से
मेरी ओर बड़ते घृणित हाथों को काटती रही
मैं निगाहों की तीक्ष्ण धार से
कितना कुछ सहा मैंने
इस जमीन पर टिके रहने के लिये
अकेली औरत के संज्ञा के साथ
कितनी ही दफा मेरे जीवन के
व्याकरण को बिगाड़ना चाहा
पर मैं मुलायम धरती के उपज नहीं थी
मेरी हथेलियां मेहंदी से कम और
सूरज की पीठ पर रोटियों को
सेंकने से अधिक लाल हो गई थी
और मेरे शहर की सड़कें गवाह थी
मेरी तलवे में उगें फफोले के एतिहास की
मुझे नकारने वालों को स्विकारना होगा
मेरी अस्तित्व के ढाँचे को तोड़ सके
ऐसा लोहा निर्माण करने वाला
किसी भी गर्भ में रच नहीं सकता
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