बचपन में जब
आधी कलसी भर कर खींचती थी
तो भरपूर डॉट पड़ती थी
आधे को भरने के लिए
फिर छोड़ी जाती थी कुएं में कलसी
आज सोचती हूं
आधा कितना कष्टदायक है न
और बड़े होते होते
आधे को अधूरा कहना सीख लिया था
आज आधे से भी अधूरा शब्द
और कष्टदायक सा लग रहा है
अधूरा ही आया मेरे हिस्से
जैसे अधूरा प्रेम
अधूरा सुहाग
अधूरा देह का सुख
सच बताने की जगह
मुझे हमेशा से बताया गया
अधूरा सच
जो पूरा झूठ भी नहीं था
पूरा सच भी
और आज यह सब अधूरा
और आधा यही रख कर जा रहे हैं
जहां जहां जो था
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