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उपमायें

लड़कियों को उपमायें  मिलती है 
चांद , फूलों की ओस की बूंदों की 
उम्र के इस पड़ाव पर 
जब मैं खंगालती हूं 
मेरे भीतर के भयानक रस में 
डूबी उपमावों की पोटली

कानों में गूंजने लगती है 
वही चिर परिचित आवाज
पिछले घरकी चाची कहती थी 
तू जनते समय महादेव 
चुल्हे के पास बैठे पार्वती को 
मना रहे थे इसीलिए तो तेरा रंग 
चुल्हे की कालिख़ सा चढ़ गया

 बड़ी सी मेरी आंखों में भी नहीं देखी 
कभी किसी को खूबसूरती 
 अक्सर सुनती थी मैं 
जिस साल मै पैदा हुई थी 
वो समय पानी के अकाल का था 
सबकी आंखें आसमान को 
ताकते ताकते बाहर आई थी 

कलसी लिए चलती मेरी धीमी चाल देख 
ओसारे पर बैठी आजी कहती 
कुष्ठ रोग से गले तेरे पैर देख 
तुझे अगली गाड़ी से ही 
मैयके रवाना कर देगी सांस तेरी

आज समय भले ही बहुत आगे निकल आया हो 
ओसारा न रहा ना आजी की सांसे 
पर उसके शब्द शब्द वर्तमान के 
इस ब्रह्मांड में निरंतर घूम रहे हैं निरंतर

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०१-१२-२०२२ ) को 'पुराना अलबम - -'(चर्चा अंक -४६२३ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. हृदय स्पर्शी रचना।
    हर अंतरा अंतर के घाव दिखा रहा है।

    जवाब देंहटाएं

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