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हम अकेले जीते लोग

हम अकेले जीते लोग
जिनसे समय ने तकदीर ने
छीन लिया हमारे साथ चलते कदमों को

और बहाल कर दिया है
हमारे जीवन में रिक्तता
हमारी हथेलियों को नहीं होता है
कभी  स्पर्श किसी अन्य हथेलियों का

ना ही हमारे हिस्से आती हैं
वो सुबहे जिममें शामिल होता है
किसी के जगाने का मुलायम स्पर्श

न हीं देर रात तक दरवाजे पर
टिके रहते हैं किसी के कदम
हमारा इंतजार लेकर

हम अकेले जीते लोग
जो बेगुनाह होकर भी
गुनहगार बन सबकी
आंखों में प्रश्नचिन्ह बन जाते हैं

त्योहारों के बाजार में
हम खो जाते हैं लेकर अपना गम

हम बस उतने ही जिंदा रहते हैं
जितनी हमारे कंधों पर
जिम्मेदारियों का वजन रहता है

हमारे शौक हमारी पसंद नापसंद
इसका ख्याल कोही नहीं रखता
और एक दिन हम ही भूल जाते हैं
हम क्या चाहते हैं क्या नहीं

हम अकेले जीते लोग
रात में करवट बदलने से भी
डरते हैं
तारों से भरे आसमान में
धरा पर लेकर तन्हाई हम
अपने आप से सिमट कर सोते हैं

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