सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हम अकेले जीते लोग

हम अकेले जीते लोग
जिनसे समय ने तकदीर ने
छीन लिया हमारे साथ चलते कदमों को

और बहाल कर दिया है
हमारे जीवन में रिक्तता
हमारी हथेलियों को नहीं होता है
कभी  स्पर्श किसी अन्य हथेलियों का

ना ही हमारे हिस्से आती हैं
वो सुबहे जिममें शामिल होता है
किसी के जगाने का मुलायम स्पर्श

न हीं देर रात तक दरवाजे पर
टिके रहते हैं किसी के कदम
हमारा इंतजार लेकर

हम अकेले जीते लोग
जो बेगुनाह होकर भी
गुनहगार बन सबकी
आंखों में प्रश्नचिन्ह बन जाते हैं

त्योहारों के बाजार में
हम खो जाते हैं लेकर अपना गम

हम बस उतने ही जिंदा रहते हैं
जितनी हमारे कंधों पर
जिम्मेदारियों का वजन रहता है

हमारे शौक हमारी पसंद नापसंद
इसका ख्याल कोही नहीं रखता
और एक दिन हम ही भूल जाते हैं
हम क्या चाहते हैं क्या नहीं

हम अकेले जीते लोग
रात में करवट बदलने से भी
डरते हैं
तारों से भरे आसमान में
धरा पर लेकर तन्हाई हम
अपने आप से सिमट कर सोते हैं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सपनो का मर जाना

सपनों का मर जाना वाकई बहुत खतरनाक होता है  वह भी ऐसे समय में  जब बडे़ मुश्किल से  तितली संभाल रही हैं  अपने रंगों का साम्राज्य निर्माण हो रहा है मुश्किल  से गर्भ में शिशु  और जद्दोजहद करके  नदी बना रही हैं  अपना रास्ता  बहुत कठिनाइयों से  वृक्ष बचा रहे हैं अपनी उम्र कुल्हाड़ियों के मालिकों से  वाकई समय बहुत खतरनाक हैं  जब केंचुए के पीठ पर  दांत उग रहे हैं  और ऐसे समय में  सपनों का मर जाना  समस्त सृष्टि का कालांतर में  धीरे-धीरे अपाहिज हो जाना है

नदी

एक नदी दूर से  पत्थरों को तोड़ती रही  और अपने देह से  रेत को बहाती रही  पर रेत को थमाते हुए  सागर की बाहों में  उसने सदा से  अपने जख्मों को  छुपाकर रखा  और सागर बड़े गर्व से  किनारे पर रचता आया रेत का अम्बार और दुनिया भर के  अनगिनत प्रेमियों ने  रेत पर लिख डाले  अपने प्रेमी के नाम  और शुक्रिया करते रहे  समंदर के संसार का  और नदी तलहटी में  खामोशी से समाती रही  पर्दे के पीछे का दृश्य  जितना पीड़ादायक होता है  उतना ही ओझल  संसार की नज़रों से

एक ऐसा भी शहर

हर महानगरों के बीचो -बीच  ओवरपुल के नीचे  बसता है, एक शहर  रात में महंगे रोशनी में सोता है  सिर के नीचे तह करके  अंँधियारे का तंकिया  यहाँ चुल्हें पर पकती है आधी रोटी और आधी  इस शहर की धूल लोकतंत्र के चश्मे से नहीं दिखता यह शहर क्यों कि इनकी झोली में  होते हैं  इनके उम्र से भी अधिक  शहर बदलने के पते यह शहर कभी किसी जुलूस में  नहीं भाग लेता है ना ही रोटी कपड़े आवास की मांँग करता है  पर महानगरों के बीचो-बीच उगते ये अधनंगे  शहर हमारे जनगणना के खाते में दर्ज नही होते हैं पर न्याय के चौखट के बाहर नर या आदम का खेल खेलते अक्सर हमारे आँखों में खटकते है