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रिति अँजुरी

तुमने प्रेम मांगा 
मैंने अंजुरी भर कर दिया 
तुमने सहारा मांगा 
मैंने अपने आंँचल को 
फैला दिया 
तुमने दुख में साथ मांगा 
मैं समस्त सृष्टि की 
भाषाओं के उन शब्द को 
चुनकर ले आयी 
जिसमें दुख को 
कम करने की ताकत थी 
तुमने रात दिन  
किसी भी प्रहर में 
मेरी दहलीज पर दस्तक दी 
मैं हमेशा से मौजूद रही 

पर आज मेरा अकेलापन
 इस दुनिया की सबसे 
भारी वस्तु बन 
मेरे जीवन में व्याप्त हैं 

और ऐसे समय में 
तुम कहाँ हो ?
बस बची है मेरे साथ 
मेरी रीति अँजुरी
और मेरे आंखों से 
भीगा आँचल 
और वो भाषा बची है
जिसमें केवल सिसकियाँ
की ध्वनि निहित हैं 
और  दिन और रात जहाँ 
किसी भी प्रहर अब 
कोई दस्तक नहीं देता है

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