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तुम नहीं समझ सकते

नदी को समझने के लिए
पानी होना पड़ता है 

होती है भाषा फूलों की भी
पर उसे समझने के लिए 
तुम्हारा कपास सम मन होना जरुरी है 

अकेलेपन की परिभाषा 
तुम सीखना उससे 
जो लाखों बुंदों के साथ 
सफर तय कर आया तो था 
पर कहीं  खाली टीन के डब्बे में 
पडा़ रहा अंतिम क्षणों तक 

तुम नहीं जान सकते 
उस बीज का दुख़ 
जो धरती के गर्भ में 
बड़े श्रम के साथ बना तो रहा 
पर बंजरता के उपमा से नवाजा गया 

तुम नहीं समझ सकते हो कभी 
उस कवि की  व्यथा 
जिससे  छीन लिया  
कागज और कलम 
जिम्मेदारी के चक्र ने
और वो  रात- रात बिलखता रहा 
आपने दुख को बयां न करने की स्थिति में

तुम नहीं समझ सकते
प्रेम में धोखा खाये
उस औरत के दर्द को
जो छिपाती है अपने
ह्रदय के घाव 
और संभालकर रखती है
दुनिया के समक्ष
अपने बेवफा प्रेमी का रुतबा.... 






टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१२-०९ -२०२२ ) को 'अम्माँ का नेह '(चर्चा अंक -४५५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. समझना ही तो मुश्किल है ,सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं

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दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

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