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अलविदा

१.

हम दोनों के बीच हमेशा से
एक मौन रात चलती रही 
और उस रात को दिन में 
तबदील करने के लिए 
मैं कहीं जख्म सहती रही 
और एक दिन सवेरा भी हो गया 
पर सूरज की पीठ पर 
मेरे नाम की जगह पर
किसी और का नाम दर्ज करते 
वो नजर आए उनकी दहलीज पर
अलविदा के लिफाफे में
दुवाओं का पैगाम लिखकर
वहाँ से हम लौट आये


२.

स्विकार और अस्वीकार 
के मध्य चलती रही हूं मैं 
मेरे पैरों से छाले नहीं 
अब तो रक्त बहने लगा है
पर न तुम देख सके 
न तुम मेरे ह्रदय में उठती 
पीड़ा की ध्वनि सुन सके कभी
अलविदा लिख दिया 
मैंने रक्तरंजित नदी की देह पर

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दु:ख

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