समंदर में जिन्ह मछलियों के हिस्से
मछुआरे का जाल आया
उसका क्रंदन कभी नहीं सुना
समंदर ने क्योंकि वहांँ पुनः
आगमन की गुंजाइश नहीं होती हैं
वृक्ष पर से पत्ते का विदा होने की
ध्वनि नहीं गुंजती है कभी
चहुँ दिशा में क्युं की वहाँ
पुनः मिलन की गुँजाइश नही
रहती है
ढलती शाम में हाथ छुडाकर
गये प्रेमी को नहीं रोकती
वो प्रेमिका क्युं की
प्रेम देह से नहीं मन से होता है
मन को बांधा नहीं जाता है
रोकने से केवल देह रुकती है मन नहीं
इसलिए जाने वाले को अपना क्रुदन
भी नहीं सुनाया जाता है
यदि उसका हुआ तो वापस आएगा । बाँध कर भला कौन रख पाया किसी को ।
जवाब देंहटाएंगहन भाव भरी रचना ।