सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्षणिकाएँ


१.

प्रतिक्षाएं रेत की तरह बह गयी
गुनाह कुछ नहीं था
बस खामोशी आडे़ आ गयी


२.

जिम्मेदारीयों ने हमेशा
मुझे भीड़ से अलग रखा
और आत्मविश्वास ने
मुझे कभी खोने नहीं दिया


३.

मेरी वफा़ की कोई किमत नही थी
तुम्हारी नजरों में
पर तुम्हारी बेवफाई की किमत
मेरी आंखें चूका रही है निरतंर


४.

भीड़ में भी अकेले है हम
पर अकेले ही
कारवां बना लेते हैं हम

टिप्पणियाँ

  1. गहन भाव सम्प्रेषित करती सुंदर क्षणिकाएं |

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी वफा़ की कोई किमत नही थी
    तुम्हारी नजरों में
    पर तुम्हारी बेवफाई की किमत
    मेरी आंखें चूका रही है निरतंर
    वाह!!!
    क्या बात...
    लाजवाब क्षणिकाएं

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं