पिता
ना के बराबर आए
पिता मेरे हिस्से में
मेरे उच्चारण के दौरान भी
बहुत कम सुख भोगा
मेरी जिह्वा ने इस शब्द का
मेरे लड़खड़ाते कदमों
के दौरान भी कभी नहीं
मिला मेरी नाजुक हथेलियों को
पिता की उँगलियों का भी स्पर्श
मेरी वापसी में मैंने कभी
नहीं देखा पिता की आँखों में
अपनी वापसी के लिए इंतजार का तैरता कोई भाव
आज उम्र के इस पड़ाव पर
आकर जब मैं ढूँढती हूंँ
अलमारियों में या फिर
किसी कोनें में एक भी चीज़
नहीं मिलती हैं यादों में भी
जो मेरे लिए पिता लेकर आए थे
किसी यात्रा से लौटते समय
अब मेरी जिह्वा भी
अभ्यस्त नहीं है
इस नाम के उच्चारण की
पर मेरी धमनियों में
गूँजता रहता है
यह शब्द निरतंर ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०६-२०२२ ) को
'पिता सबल आधार'(चर्चा अंक -४४६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद
हटाएंशब्द नहीं है मेरे पास इस रचना की प्रशंसा करने एवं इसके भाव को व्याख्या कर पाने के लिए. नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंकुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हूँ. एक पूरे जीवन की पीड़ा है.
जवाब देंहटाएं