मैं उसे बरसों से जानता था
वो ना के बराबर बोलता था
मैं दाल चावल का भाव पूछता था
वो मेरी तरफ अनदेखा करता था
मालिक का हिसाब किताब लिखता था ।
दो बोतल पानी के साथ एक रोटी खाता था
इन दिनों उसकी हड्डियां गिनती में आ रही थी
तनख्वाह के बही खाते में पुराना अंक देख
इन दिनों वो बेजार सा रहने लगा था ।
जिस दिन कलम को जेब से नही निकाला था
उस दिन उसने भूजाओ की मदद से
अपनी जिव्हा को बाहर खींचा था
और वो मालिक के सामने बहुत कुछ बोला था ।
अंत में उसने अपनी औकात उठाई थी
और तनख्वाह के आंकड़े के साथ
मालिक को उसकी औकात बताई थी
मैं उसे आज भी जानता था
आज वो रोटी को अपनी भूख से नहीं
अपने स्वाभिमान के साथ आंकने लगा था ।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंऔकत ! शब्द ही ऐसा है ।
जवाब देंहटाएं- बीजेन्द्र जैमिनी
अति सुंदर
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