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विश्व किताब दिवस पर

याद आते हैं वे अनगिनत बच्चे 
जो पगडंडी से होकर
गुजरते थे पाठशाला के लिए

एक हाथ से किताबें पकड़ते 
दूसरे हाथ से कभी 
धान की बालियों को छूते 
तो कभी अमिया पर 
पत्थर फेंकते 

कभी कीचड़ से सने पाव लेकर 
तो कभी तपते पाषाण पर से 
चलकर पहुंचते थे पाठशाला में

आज विश्व किताब दिवस पर 
याद आ रहे हैं वो 
अनगिनत बच्चों की कतारें 

जो कभी भविष्य के 
सपनों को साकार करने निकले थे 
पगडंडी के रास्ते 
बारिशों में अपने बुशर्ट के
भीतर बचाकर किताबों को 
आज वे पहुंचे होंगे सब
कामयाबी की राह पर

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