कविता लिखी नही जाती
वह तो बुनी जाती है
कभी नेह के धागों से
तो कभी पीड़ा की सेज पर
जैसे एक स्त्री बन जाती है मिट्टी
रोपती है देह में नंवाकूर को
वैसे ही कविता का होता है जन्म
ह्रदय है उसके पोषण का गर्भ
जब उतारी जाती है पीड़ा कागजों पर
कुरेदता है एक कवि कछुवे की पीठ
बैठता है आधी रात को कलम के साथ
घसीटता है खुद को बियाबान के नीरव अकेलेपन में
नही देख सकता है वो अपने इर्द गिर्द
जिन्दा लाशें मरे हुये वजूद की
कचोटता है अपने कलम कि स्नाही से
उन्हकी आँखो की पुतलियाँ को
रखना चाहता है अपनी आत्मा पर
एक कविता रोष और आक्रोश की
जब प्रेम झडने लगता है कवि की कलम से
नदी की देह पर उतर आता है चाँद
प्रेमिका का काजल बहता है इन्तजार में
और कवि जीता है प्रेम की सोंधी सोंधी खुशबू को
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
धन्यवाद सर
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 18 अप्रैल 2022 ) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 4404) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वाह! कविता की इतनी सुंदर व्याख्या और वह भी एक कविता में! बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंकविता के सृजन की सुंदर व्याख्या ।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत सुंदर 👌
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