हर कोई सराबोर रहा
होली के रंगों में
आसमान के माथे भी सजा
इंद्रधनुष बिना चुके पर
इस बार भी रखा तूने
मेरा माथा सुना
ठीक वैसे ही
जैसे घने बीहड़ में
रातरानी के फूल का खिलना
और बिना किसी के स्पर्श के मुरझा जाना
झूठ कहती है दुनिया
कि होली पर मिट जाता है
द्वेष राग केवल शेष बचता है अनुराग
काश तुम आते इस बार
मुट्ठी में भरकर ढेर सारा प्यार
तुम्हारे आने के दस्तक भर से
मैं काली नदी की तरह शर्माती
और छुप जाती तुम्हारे ही बाहों में
काश इस बार तुम आते
मेरे चेहरे पर स्मित हास्य पुनः जीवित होता
मेरे भी देहरी पर गुलाल
सज जाता काश तुम आते इस बार
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
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