सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्षणिकाएं


१)
हम दोनों के संवादों में
मेरा ह यह अक्षर
इस बात का प्रमाण
रहा हमेशा से
आप कहते थे
और हम सुनते थे ।

२)
प्रथम मुलाकात में 
बिच्छडते समय
तुम्हारा यूं पलटकर देखना 
काश अगली मुलाकात के 
वादों पर आंखों से
किया हस्ताक्षर होता ।

३)
उस दिन सरिता के आंखों का पानी सुख गया
जिस दिन तुमने नदी किनारे बैठकर
उसे मिटाने की योजनाओं को जन्म दिया ।

४)
बचाये रखना खुद को प्रेम में
सर्वस्य अर्पण करने के पूर्व
जैसे मृत्यु की दहलीज पर
खड़ी सांसें
निरंतर संचीत करती हैं
भविष्य के लिए निधी ।

५)

तुम्हारे आवाज के स्पर्श की 
एक अरसे से हो गई है 
आदत सी जो छुती है 
मेरी आत्मा को
अब देह के स्पर्श का
कोई मतलब नहीं रहा है ।

६)

आंगन की तुलसी पूरा दिन
तुम्हारी प्रतिक्षा में कांट देती है
पर तुम्ह कभी उसके लिए नहीं लौटे ।






टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं