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क्षणिकाएं


१)
हम दोनों के संवादों में
मेरा ह यह अक्षर
इस बात का प्रमाण
रहा हमेशा से
आप कहते थे
और हम सुनते थे ।

२)
प्रथम मुलाकात में 
बिच्छडते समय
तुम्हारा यूं पलटकर देखना 
काश अगली मुलाकात के 
वादों पर आंखों से
किया हस्ताक्षर होता ।

३)
उस दिन सरिता के आंखों का पानी सुख गया
जिस दिन तुमने नदी किनारे बैठकर
उसे मिटाने की योजनाओं को जन्म दिया ।

४)
बचाये रखना खुद को प्रेम में
सर्वस्य अर्पण करने के पूर्व
जैसे मृत्यु की दहलीज पर
खड़ी सांसें
निरंतर संचीत करती हैं
भविष्य के लिए निधी ।

५)

तुम्हारे आवाज के स्पर्श की 
एक अरसे से हो गई है 
आदत सी जो छुती है 
मेरी आत्मा को
अब देह के स्पर्श का
कोई मतलब नहीं रहा है ।

६)

आंगन की तुलसी पूरा दिन
तुम्हारी प्रतिक्षा में कांट देती है
पर तुम्ह कभी उसके लिए नहीं लौटे ।






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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

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जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना