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बालिका दिवस पर



अनचाहा  जन्म मेरा

बड़ी माँ  खेती में पनपे
अनचाहे धान को उखा़ड़कर फेंकती
कुछ इसी तरह अनचाहा हुआ जन्म मेरा
छत पर किसी  पौधे के उग आने से
चितां में पड़ जाती थी दादी छत के टुटने के
कुछ ऐसा ही रहा जन्म मेरा
सुनाती है अक्सर पड़ोस की चाची
दिये थे पिता ने भारी मन से
दो रूपये दाई माँ को
और ढेर सारी गालियाँ उस ईश्वर को
याद आता है सचित्र वह दृश्य आज भी
जब मैं बैठती थी मोड़कर पैर पीछे
दद्दा देते खूब गालियाँ उनका मानना था
तुम्हारे बाद लड़के का जन्म होगा
और पीछे पैर डालने से उसका अपमान
जैसे-जैसे बड़ी होती गई
घर के हर कोने में मैने जगह बनाई
और एक दिन बिना किसी के,
मन के तालों को खोले
हमेशा के लिए मै वहाँ से निकल गयी

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-01-2022) को चर्चा मंच "मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र" (चर्चा-अंक4322) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही मार्मिक व हृदयस्पर्शी
    बहुत सी लड़कियों का जन्म अनचाहा ही होता है यानि कि लड़कों के इंतज़ार में!
    पता नहीं कब लोगों की मानसिकता बदलेगी 😒😒

    जवाब देंहटाएं

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