रात के दो बज रहे थे, फिर भी किस की यह मजाल है! कि इस महानगर की देह पर थोड़ी ही देर के लिए सही सन्नाटा पसरा दे । बस स्टैंड के बाहर की सड़क पर भारी भरकम ट्रकों की आवाजाही शुरू थी । सड़क दबकर उसकी सांसें भले ही फुल जाये पर वह चीख नहीं सकती उसका चिखना मानो उसके नियम के विरुद्ध होगा वह सड़क थी !उसे तो सबको ढोना होगा बिल्कुल वैसी ही कुछ चीखें इस समय मेघना के मन मस्तिष्क में उठ रही थी ,पर उनके ध्वनि पर अंकुश लगाना भी जरूरी था ।
पिछले तीन घंटे से वो यहां बैंठी थी । कितने ही मुसाफिर उसके बगल में बैठकर चले गए पर मेघना के पैर अपने आशियाने की तरफ नहीं उठ रहे थे । चारों तरफ लोगों का शोर पर उन सबसे मेघना उतनी ही बेखबर थी ! जितनी उसके इर्द-गिर्द की भीड़ मेघना से ! यहां मतलब के बिना कोई किसी पर एक क्षण भी खर्च नहीं करता है । मुर्दें को भी तब तक पूछा नहीं जाएगा जब तक वो अपने शरीर को गलाकर उसकी बदबू किसी के नाक में नहीं जमा करेगा । यही हाल है हर महानगरों का मेघना का मोबाइल बज उठा उसे उसने वैसे ही बजता छोड़ दिया और वो चलने लगी ।
राह वहीं इर्द गिर्द के दृश्य वहीं पर दृष्टिकोण बदल गया था । पिछले तीन साल से वो इस राह से आती-जाती रही यहां के हर एक दुकानों में रेस्तरां में अपने प्रिय पुरुष का हाथ भरौसे की मानों परिभाषा ही हो इस तरह से उसे थामकर वो इन राहों से अनगिनत बार गुजरी थी ।
दरवाजा खोल कर वो अंदर आई हॉल की बिजली जल रही थी । जैसे ही उसकी नजर सोफे पर पड़ी तो उसने देखा मीना बैठे-बैठे वहीं पर सो गई है । मीना उसके लिए खाना बनाती पर मेघना को समझ नहीं आया वो अब तक यहां क्या कर रही हैं ! रोज़ तो रात का खाना बनाकर आठ बजे ही निकल जाती है । मेघना ने उसे जगाने की कोशिश की पर दिन भर के श्रम की नींद से वो इतनी आसानी से उठने वाली नहीं थी । मीना लगभग मेघना की हमउम्र है पांच छः घरों में काम करती थी । कुछ देर बाद मेघना ने उसे बड़ी कोशिश करके जगा ही दिया । दोनों की आंखों में एक ही प्रश्न था तुम यहां कैसी मिना इतनी गहरी नींद में थी ! कि उसे याद ही नहीं रहा वह मेघना मैडम का इंतजार करते-करते सो गई
"तुम घर नहीं गई " ।
" नहीं मैडम आपको मिलना था ! इसलिए यहीं रूक गई कितनी ही दफे आप का फोन जोड़ा मैडम पर आप ने उठाया ही नहीं " ।
"क्यों "?
" पिछले दो चार दिनों से आप बिना खाना
खाएं खाना वैसे ही छोड़ रही है "।
मेघना चुप रही फिर कुछ देर बाद मिना ने कहा "राकेश साहब के कपड़े भी धोने के लिए नहीं पड़ रहे हैं इन दिनों क्यों "?
" वो अब यहां नहीं रहते है ! अब से तुम मेरे अकेले का खाना बनाना " ।
मेघना वहां से उठकर बेडरूम में चली गई । रोज रात को आती थी ! और इस पूरे घर का अंधियारा अपने बदन पर ओढ़कर पिडा़ की अग्नी में तपती । राकेश की स्मृतियां बारिश की नमी से उग आने वाले फफूदे की तरह घर के हर चिज़ पर जमी थी । उसे मिटाने के लिए नजाने मेघना को आने वाले भविष्य में अपनी आंखों से कितनी बरसाते करनी होगी ।
लिविंग रिलेशन की जो एक लहर चल रही थी । उसमें आजादी के नाम पर वह भी शामिल हो गयी । अब उस पुरुष की सोच का क्या करें जो आज भी औरत को यूज़ एंड थ्रो की परिभाषा के ही चष्मे से देख रहा है ।
उधर राकेश के सात बिन ब्याही रहने के कारण घर के रास्ते पर उसके कदमों को अपमानजनक समझकर घर वालों ने रिश्ता तोड़ दिया । जिसके लिए सबको छोड़ा था वहीं आज छोड़कर चला गया । करीब करीब तीन साल तक वे दोनों साथ रहे सब कुछ ठीक चल रहा था ! यहां तक मेघना ने भविष्य के लिए कुछ पैसे इकट्ठा करना भी शुरू कर दिये मन मार कर आने वाले खुशियां पैसों के बचत के रूप में वो जुटा रही थी ।
पिछले तीन चार महीने से अचानक से राकेश के व्यवहार में कुछ बदलाव आने लगा । वो हर हफ्ते अपने गांव चला जाता तन और मन दोनों से राकेश का धीरे-धीरे दूर जाना मेघना महसूस भी कर रही थी ।
राकेश पर उसको उतना ही विश्वास था ! जितना ऊपर उठे छत को जमीन के नीचे गड़ी नीव पर होता है । यकायक वो नीव अंदर से डगमगाने लगी थी । जितनी कोशिश वह करती उस नीव को ठोस मिट्टी के अंदर बनाए रखने की उतनी नहीं तेजी से मेघना की विश्वास की नीव मिट्टी छोड़कर उखड़ रही थी । और एक दिन प्रेम और भरोसे को तोड़कर नीव ने छत को जमीन पर पटक दिया और छल और कपट नंगा होकर विभच्स हंसी हंसने लगा ।
शहरों में लोग सप्ताह का अंतिम दिन आते-आते यकायक आलस्य और थकान के कारण पसर से जाते हैं । और सोमवार की सुबह सूरज की तरह झट्ट अंगड़ाइयां लेकर खड़े होकर अपने ही इर्द-गिर्द एक लक्ष्मण रेखा खींचकर अगले सप्ताह के अंत तक उसी परिधि के अंदर चलते -फिरते हैं ।
इस सप्ताह के अंत में राकेश ने गांव जाने के कोई बात नहीं की मेघना ने ऑफिस के लिए निकलते समय राकेश के गालों को चूमा और बाय कहा । प्रत्युत्तर में एक ठंडा सा खामोशी में लिपटा बाय लेकर वो ऑफिस के लिए निकल गए राकेश का ओफिस नजदीक था इसलिए वो मेघना के बाद निकलता था ।
आज पूरा दिन ऑफिस में काम करते समय मेघना ने इस वीकेंड की सारी प्लानिंग कर डाली वो इस पूरे दो दिन को राकेश के साथ बिताना चाहती थी । रिश्ते में दुरियां और इस खामोशी का कारण जानने की कोशिश करके पुनः वो सबकुछ पहले जैसा सामान्य करना चाहती थी ।
लिफ्टमैन को हर सप्ताह के अंत में वो कुछ खाने की चिज़ लाकर देती । जैसे ही मेघना ने उसे सामान थमाया लिफ्टमैन ने उसे बताया कि राकेश साब दोपहर को ही आ चुके हैं । राकेश ने दरवाजा खोला और मेघना की ओर अनदेखा करके वो अंदर हो लिया ।
अंदर दाखिल होते ही मेघना ने देखा राकेश दो बैग लेकर जाने के लिए तैयार खड़ा था ।
" आप जा कहां रहे हैं " ?
मेघना के इस प्रश्न में आश्चर्य था क्रोध था और पूरे दिन की जो उसने इस दो दिन को खुबसूरत बनाने की प्लानिंग कर रखी थी उसकी निराशा भी थी । औरत केवल बचाना जानती है चाहे वो रिश्ते हो या चिजें ।
" मैं अब यहां नहीं रहना चाहता हूं दोस्त के फ्लेट में शिफ्ट हो रहा हूं " ।
" पर क्यूं "?
" मां चाहती है मै हमारी ही बिरादरी की लड़की से शादी करूं"।
मेघना की आंखों में अब क्रोध उफना रहा था ।
" और जो लड़की पिछले तीन साल से अपने घर वालों के खिलाफ जाकर आप के साथ हैं वो क्या चाहती है ?आप ने एक बार भी नहीं सोचा " ।
राकेश ने इतना भर कहा
" मैं अब तय कर चूका हूं बस बेग में कुछ कपड़े रख लिये है । बाकी का सामना तुम्हारे इस्तेमाल के लिए छोड़ दिया है "।
मेघना ने कहा
" उन सामानों के साथ मुझे भी "।
इतना कह वो सोफे पर गीर गई ।
उस रात मेघना अगर किसी नदी को अपने साथ बहने के लिए चुनौती देती , तो शायद नदी भी हार जाती इतने आंसू बह गये । उन आंसुओं में केवल राकेश के जाने का ग़म शामिल नहीं था ! बल्कि एक पच्छतावा था ! क्यू ? उसने एक पुरुष को इतनी आज़ादी दी आज वो उसे एक अपशब्द की तरह अपनी जीवनरुपी भाषा से बेदखल कर चला गया ।और वो इतनी असहाय होकर देखती रही क्यूं उस पुरुष के कदमों को उसने प्रतिशोध की बेड़ियों में जकड़कर पटक नहीं दिया ।
रोज़ रात की तरह मेघना राकेश की बेइमानी की सजा अपने आंखों को दे रही थी उसके ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज सुनकर मिना ने उसे आकर संभाल लिया ।
मेघना मिना को कुछ बताती उसके पहले ही अपने अनुभव से मिना सारी बातें ताड़ गयी ।
उसको शांत कराते उसने इतना भर कहा
" मैडम भले मैं अनपढ़ हुं , गंवारू भाषा बोलती हूं ! पर हम सबके मन की भाषा सुख और दुख इन दो भावों में बूनी है ना हम औरतों के दुःख ठीक उस मेघ से अनाथ हुए बुंदों के समान एक जैसे है ना बुंदे अलग-अलग हैं पर पानी का स्वाद एक जैसा " ।
मिना धीरे-धीरे मेघना को शांत करने लगी ।
आज पूरे दिन इस घर में घड़ी के टिक-टिक के सिवाय अन्य कोई आवाज नहीं उठी थी मेघना ने केवल दो बार ही खुद को बीस्तर से अलग कर दिया होगा।
शाम को मिना फिर आ गई ।
उसने किचन से ही कॉफी बनाते-बनाते मेघना को आवाज लगाई वो चाहती थी मैडम बिस्तर छोड़कर बाहर सोफे पर आकर बैठ जाये ।
दोनों खामोशी से ही कॉफी के घुट ले रही थी पर मिना इस खामोशी को भगाना चाहती थी ।
उसने धीरे से कहा
" मैडम एक बात कहूं"।
"जी"
" मन में जितनी उधल -पूतल मच रही है ना !उसे बाहर निकाल दिजिए और कल से पूरे हल्के मन और दिमाग से आफीस के लिए तैयार हो जाईए "।
मेघना ने कहा
" तुम नहीं समझोगी"।
" मैं सब समझती हूं मैडम जी मैं भी गुजर चूकी हूं "।
" इसलिए तुमने आजतक शादी नहीं की ना "?
मिना हंसने लगी
" शादी के उम्र में माई दाल आटे का भाव पिठ पर रखकर निकल गई । दो बहनों को कौन खिलाता बाप तो गिनती में ना के बराबर "।
"उसमें क्या अब कर लो बहने बड़ी हो गई ना "।
" हमारे में अठारह बरस से बीस तक ही छोरी ब्याहकर ले जाने लायक उम्र होती हैं । उसके बाद बूढ़ी पर उन मर्दो को बीस के उपर की लड़की सोने के लिए चाहिए । नासपिटे गली में मुझे देखकर इशारा करके मरते हैं परसों ही एक को पुछा मेरे बदन को चखने के लिए इतना उतावला है ! तो ब्याह करके लिवा जा ना "।
"फिर"
" फिर क्या भाग गया गली के अंधेरे में मुंह लेकर "।
"बिल्कुल सही किया"
"तो मैड़म आप भी वही किजिए ना मन में जितना भरकर रखा है ना उसे बाहर निकालकर भगा दिजिए "।
मेघना को इस समय मिना का दिया दिलासा दवा की तरह उसपर असर कर रहा था । देर रात तक उनके सुख-दुख एक दूसरे के बीच संवाद करते रहे ।
सुबह उठकर मेघना ने मिना से मिले धैर्य और साहस का पोशाक पहन लिया ।
अनपढ़ थी मिना पर अनुभवों की पाठशाला में सीजी हुई थी ।
एक दिन ऑफिस से लौटते समय उसने रास्ते में जमी भीड़ देखी ! तो रिक्शे वाले को रोकने के लिए कह वो उस भीड़ के पास गई तो उसने देखा की कपड़े में लिपटा नवजात शिशु कोई छोड़कर चला गया था ! और यह भीड़ तमाशबीन बने उस बच्चे को ताक रही थीं । बीना समय गंवाए मेघना ने उसे उठा लिया । भीड़ कुछ कहती उसके पहले ही मेघना वहां से निकल गई । पुलिस की कार्रवाई इधर-उधर की बातें कानूनी प्रक्रिया से गुजरते हुए मेघना उस नन्ही जान को अपने घर लेकर आई और उसने रास्ते में ही मिना को भी फोन लगाया । मीना और मेघना उस अनाथ बच्चे की देखभाल में लग गए उसी बिच चार महीने का समय बीत गया । राकेश ने दिया जख्म धीरे-धीरे भरता गया एक सुकून सा मिलने लगा था उसे इस अनाथ बच्चे के आने से जीवन का मतलब और उद्देश्य दोनों बदल से गये थे ।
वो कहते हैं ना ! जख्मों पर भले ही समय की चादर ओढ़ दी गई हो पर एक आहट भी काफी होते हैं ! उदास होने के लिए । एक शाम मेघना को राकेश का मैसेज आया वो वापस आ रहा था ।
आज रविवार है मेघना चाहती थी ! कि इस छोटी सी जान के साथ खूब खेले उसके हाव-भाव निहारे पर अतीत का पन्ना उसके सामने फिर खुल गया था । जो उसे लगातार बेचैन किए जा रहा था । कुछ समय बाद राकेश दरवाजे पर था । एक समय पर यह चेहरा उसके मन मस्तिष्क और आंखों में हर क्षण तैरता रहता था ! उस चेहरे को आज वो एक नजर भी देखना नहीं चाहती थी । जो व्यक्ति उसे नकार कर गया था और जिसने उसके अस्तित्व को तुच्छ समझा था ! वह व्यक्ति आज वापस लौटना चाहता था पर आज मेघना स्वाभिमान के दहलीज पर खड़ी थी ।
मेघना ने दरवाजे के बाहर एक काले रंग की बड़ी सी बैग सरका दी ।
"आपका कुछ सामान था इस बैग में भर दिया है ! यहां जगह की दिक्कत हो रही है ! नया सामान रखने के लिए ।
" पर मेघना में लौट आया हूं ! वापस तुम्हारे पास " राकेश ने आवाज में कोमलता लाते हुए कहा ।
" अब वापसी के रास्तों पर अविश्वास की सांकल चढ़ चूकी है ।"
इतने में मिना ने अंदर से आवाज लगाई
" मैडम देखो गुड़िया कितनी सुंदर मुस्कान दे रही है । तनिक मोबाइल में खींचो तो "
राकेश कुछ कहता इसके पहले दरवाजा बंद हो चुका था । मेघना ने एक बार भी मुड़कर नहीं देखा राकेश का लौट जाना क्यू की वापसी इस बार नामुमकिन थी ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें