सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सिंगल मदर

सिंगल मदर होना औरतें खुद से नहीं चुनती हैं !  बल्कि जब एक पुरुष गैर जिम्मेदार होता है ,उस स्थिति में अपने कंधों पर जिम्मेदारियों को उठाकर घर , नौकरी बच्चे इन तमाम चीजों के पिछे एक औरत खुद का जीवन भी जीना भूल जाती हैं । वह पूरी तरह से अपने बच्चों  के लिए समर्पित होती हैं और एक मोड़ ऐसा भी आता है,! जब कुछ पुरुष उनके अकेलेपन को दूर करने का दिखावा भी करते हैं और ऐसी स्थिति में कभी -कभी औरतें भी विश्वास कर बैठती हैं ! पर बहुत कम मामलों में पुरुष उनका साथ देते हैं नहीं तो हम अक्सर देखते हैं उनके हिस्से वही यातनाएं वही पीडा़ये आ जाती हैं ।  सिंगल मदर का जीवन उतना आसान नहीं होता है उन्हें  समाज में हर दिन एक नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है बच्चों के स्कूल से लेकर जहां वो रहती है जिस जिस रास्ते से गुजरती है हर जगह उन्हें प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा जाता है । कुछ तथाकथित पुरुष वर्ग उन्हें खुले मिठाई के डिब्बे की तरह मानता है पर उनका साथ देना नहीं चाहता है कुछ समय बाद बड़ी आसानी से पीठ दिखाकर नदारत भी हो जाता है। अक्सर उनके बच्चों के चेहरे पर पिता के साथ ना होने का जो दर्द उभरकर आता  है उसे न जाने इस दुनिया में कितनी ही औरतें हर रोज़ अपने आंखों के किनारे से बहाती होगी ।  हमारा समाज आज भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है ! कि एक औरत भी पूरी जिम्मेदारियों के साथ बच्चों का लालन -पालन कर सकती हैं । समाज की नजरें उन्हें हमेशा हेय दृष्टि या फिर आपराधिक दृष्टि से देखती हैं उसमें से अगर मध्यम वर्गीय परिवार की औरतें अकेले जीवन बिताती हैं ! तो समाज में उनके खान-पान से लेकर उनके पहनावे तक को शक की दृष्टि से देखा जाता है । उनका हंसना उनका उठना बैठना इन तमाम बातों पर उंगलियां पुरुषों से अधिक औरतें की तरफ से उठाई जाती है ।  पर उसका दर्द कोई नहीं जानता है उनके लिए अश्लील भाषा का प्रयोग करने में भी कोई पिछे नहीं आता उनको बहुत सरलता से निशाना बनाया जाता है । कुछ औरतें आगे पढ़ने से डरती हैं कुछ औरतें निडरता से आगे बढ़ जाती है।क्या सिंगल मदर होना गुनाह है ? उन्होंने यह जीवन खुद  चुना है क्या ? एक औरत नौ महीने  बच्चे को अपने गर्भ में रखकर अपने खून से सींचती हैं ,जन्म देती हैं क्या वह उसकी जिम्मेदारियां उठाने के लिए लायक नहीं हैं ? उसके लिए केवल पुरुष का ही होना जरूरी है ? क्यों  सिंगल मदर पर उंगलियां उठाई जाती हैं ? क्यों उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है ?  वह एक अच्छे नागरिक का निर्माण अकेले भी कर सकती हैं इसपर क्यू विश्वास नहीं किया जाता है । इस क्यों का सवाल  पाने के लिए उस अनादी काल से अस्वस्थ मानसिकता पर पड़े धूल को  पहले झाड़ना होगा ।

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत प्रासंगिक आलेख। समाज अंधेरों पर चर्चा नहीं करना चाहता है। उम्दा लेखन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्रेम 1

अगर प्रेम का मतलब  इतना भर होता एक दूसरे से अनगिनत संवादों को समय की पीठ पर उतारते रहना वादों के महानगर खड़ें करना एक दूसरे के बगैर न रहकर हर प्रहर का  बंद दरवाजा खोल देना अगर प्रेम की सीमा इतनी भर होती  तो कबका तुम्हें मैं भुला देती  पर प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई वो लकीर है  जो मेरे अंतिम यात्रा तक रहेगी  और दाह की भूमि तक आकर मेरे देह के साथ मिट जायेगी और हवा के तरंगों पर सवार हो आसमानी बादल बनकर  किसी तुलसी के हृदय में बूंद बन समा जाएगी  तुम्हारा प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई  वो लकीर है जो पुनः पुनः जन्म लेगी

रिक्तता

घर के भीतर जभी  पुकारा मैने उसे  प्रत्येक बार खाली आती रही  मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब  सामने वाली  कुर्सी खाली रही हमेशा  देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया  एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है  जहाँ से लौटना असभव बना है अब

रमा

शनिवार की दोपहर हुबली शहर के बस अड्डें पर उन लोगों की भीड़ थी जो हफ्तें में एक बार अपने गांव जाते । कंटक्टर अलग-अलग गांवो ,कस्बों, शहरों के नाम पुकार रहें थे । भींड के कोलाहल और शोर-शराबे के बीच कंडक्टर की पूकार स्पष्टं और किसे संगीत के बोल की तरह सुनाई दे रही  थी । इसी बीच हफ्तें भर के परिश्रम और थकान के बाद रमा अपनी  एक और मंजिल की तरफ जिम्मेदारी को कंधों पर लादे हर शनिवार की तरह इस शनिवार भी गांव की दों बजे की बस पकड़ने के लिए आधी सांस भरी ना छोड़ी इस तरह कदम बढ़ा रही थी । तभी उसके कानों में अपने गांव का नाम पड़ा कंडक्टर उँची तान में पुकार रहा था किरवती... किरवती...किरवती ... अपने गांव का नाम कान में पड़ते ही उसके पैरों की थकान कोसों दूर भाग गई । उसने बस पर चढ़ते ही इधर-उधर नजर दौड़ाई दो चार जगहें खाली दिखाई दी वो एक महिला के बाजू में जाकर बैठ गए ताकि थोड़ी जंबान  भी चल जाएगी और पसरकर आराम से बैठ सकेगी बाजू में बैठी महिला भी अनुमान उसी के उम्रं की होगी । रमा ने अपने सामान की थैली नीचे पैरों के पास रखतें हुएं उस महिला से पूछा  “  आप कहां जा रही हैं ?’’  “ यही नवलगुंद में उतर जाऊंगी ।