मैं अपने टुटे रिश्ते की मरम्मत रोज करती हूं
मैं अपने आंसूओं को रोज तुम्हारे
यादों की कश्ती में बिठाकर
समंदर की सैर करवाती हूं
मैं तुम्हें रोज़ आवाज देती हूं
और रोज़ मेरे शब्द
दीवार की आगोश में
आत्महत्या करते हैं
और एक रोज़
ऐसा भी कुछ घटित होगा
रोज़ का शोरों
एक दिन
अनन्त यात्रा में
विलीन होगा
और तुम तभी
मुस्कुराना
जैसे मुस्कुराती है
मंद मंद
एक नदी
कावेरी की तरह
समर्पित होने
समंदर की बाहों में
वाह। अच्छी कविता। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय
हटाएं