आप ने दिया दुख
होता जा रहा है मेरे लिए कठिन
क्षीण होती जा रही है
मेरी जीने की इच्छा
भर गई हूं मैं
हीन भावना से
लगने लगा है अब
वस्तु भर हूं मैं , समय समय पर
इस्तेमाल करके छोड़ने वाली
जिसे लोग सुविधानुसार करते हैं
उपयोग और उपभोग
पाकर सुख फेंक जाते हैं
किसी कूड़ेदान में ।
ऐसा भी नहीं कि तुम पहले व्यक्ति हो
या फिर आखिरी
न ही मैं पहली स्त्री हूं और न आखिरी
सिलसिला यह सदियों से चल रहा है
बदलते हैं बस नाम, स्थान, साल
स्थितियां होती हैं
बिल्कुल एक जैसी
यातनाओं से भरी।
आज आप को सबकुछ सौंपकर लौट रही हूं दुख की अंधेरी गुफा में
खाली कदम।
इतनी निराशा भरी अभिव्यक्ति क्यों मित्र ।
जवाब देंहटाएंदुनिया असंवेदनशील होती जा रही है
हटाएंपीड़ा के गहन भाव। जाने कितनों का सच है ये।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने धन्यवाद
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