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चूमना महज मोह नहीं है

मैं तुम्हें चूमना चाहती हूं
जैसे श्रद्धा से चूमता है कोई
ईश्वर की दहलीज
मैं तुम्हें चूमना चाहती हूं
जैसे मां अपने बच्चे को
स्तनपान करते समय
चूमती है उसका अंगूठा
और तुम्हारा मुझे चूमना
कुछ इस तरह से होगा
जैसे अंनत काल से पड़े
अज्ञानता की राशि को
छूती है ज्ञान की रोशनी

टिप्पणियाँ

  1. बेहतरीन रचना..भावुकता एवं अलौकिक संदर्भ लिए..

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  2. अद्भुत सृजन । हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।

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  3. भाषिक सौंदर्य से लबरेज़। सुन्दर

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  4. बहुत बहुत सुन्दर --- नितांत नवीन अभिव्यक्ति

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