जब से ढूँढ़े जाने लगे हल
बारूद की बोरियों में
तब से किसानों के हल को
चाटना शुरू कर दिया दीमकों ने
जब से बारूद के कारखाने के
मालिकों के जूते साफ करने
गाँवों से किसान आने लगे
तब से बोरियों की आँतें सिकुड़ने लगीं
जब से आने लगीं
किसानों की रेज़गारियाँ
बारूदी कारखानों से
तब से गायब है मिट्टी की गंध
धरतीपुत्रों की मुट्ठियों से
जब से बादलों ने सुनी है
लुप्त होती बैलों की घंटियाँ
और बारूदी गोलियों की कथा
तब से बूँदों ने सुनायी है
खेतों से बालियों के बिछड़ने की व्यथा
जब से बारूदी रँग
वसुंधरा के सीने पर जम गया है
तब से लुप्त होता जा रहा है
मेरे पूर्वजों की सभ्यता का रँग
जब से आने लगीं
जवाब देंहटाएंकिसानों की रेज़गारियाँ
बारूदी कारखानों से
तब से गायब है मिट्टी की गंध
धरतीपुत्रों की मुट्ठियों से
बहुत ही अच्छी रचना
धन्यवाद आपका
हटाएंमेरे ब्लोग पर नियमित आकर हौसला अफजाई करने के लिए
बहुत प्रभावी रचना ... बारूद चाट जाता है हर रंग को और भर देता है बाद लहू का रंग .।.
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ...
धन्यवाद सर
हटाएंसही कहा आपने बारूदी रंग ने हमारे खुशहाली का रंग ध्वस्त किया है
बहुत गहरी और प्रभावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएं"जब से बारूदी रँग
जवाब देंहटाएंवसुंधरा के सिने पर जम गया है
तब से लुप्त होता जा रहा है
मेरे पुर्वजों की सभ्यता का रँग "
गहरी संवेदनाओं से जुड़ी सुन्दर और भावपूर्ण रचना |