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बारूदी रंग

जब से ढूँढ़े जाने लगे हल
बारूद की बोरियों में
तब से किसानों के हल को
चाटना शुरू कर दिया दीमकों ने

जब से बारूद के कारखाने के
मालिकों के जूते साफ करने
गाँवों से किसान आने लगे
तब से बोरियों की आँतें सिकुड़ने लगीं

जब से आने लगीं 
किसानों की रेज़गारियाँ
बारूदी कारखानों से
तब से गायब है मिट्टी की गंध
धरतीपुत्रों की मुट्ठियों से

जब से बादलों ने सुनी है 
लुप्त होती बैलों की घंटियाँ 
और बारूदी गोलियों की कथा
तब से बूँदों ने सुनायी है
खेतों से बालियों के बिछड़ने की व्यथा

जब से बारूदी रँग 
वसुंधरा के सीने पर जम गया है 
तब से लुप्त होता जा रहा है
मेरे पूर्वजों की सभ्यता का रँग

टिप्पणियाँ

  1. जब से आने लगीं
    किसानों की रेज़गारियाँ
    बारूदी कारखानों से
    तब से गायब है मिट्टी की गंध
    धरतीपुत्रों की मुट्ठियों से
    बहुत ही अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद आपका
      मेरे ब्लोग पर नियमित आकर हौसला अफजाई करने के लिए

      हटाएं
  2. बहुत प्रभावी रचना ... बारूद चाट जाता है हर रंग को और भर देता है बाद लहू का रंग .।.
    गहरी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सर
      सही कहा आपने बारूदी रंग ने हमारे खुशहाली का रंग ध्वस्त किया है

      हटाएं
  3. बहुत गहरी और प्रभावपूर्ण रचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. "जब से बारूदी रँग
    वसुंधरा के सिने पर जम गया है
    तब से लुप्त होता जा रहा है
    मेरे पुर्वजों की सभ्यता का रँग "
    गहरी संवेदनाओं से जुड़ी सुन्दर और भावपूर्ण रचना |

    जवाब देंहटाएं

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