मोचीराम
हाट के शोरगुल बीच सदियों से
खड़ा मैला कुचैला खुरदरा
वो बूढ़ा वृक्ष न जाने आँखो में
है किसका इंतजार नित लौटती
दूर तक जाकर उसकी निगाहें
निराश मन से निहारता वो
मटमैले पैरों पे पुराना पर
आज भी जीवित
मोचीराम का खुरदरा स्पर्श
पहली बार जिस दिन
ठोकी गयी थी उसपर
मोटी सी कील लटकाने थैली
क्रोध से बड़बड़ाया था वो बूढ़ा वृक्ष
मोचीराम नित थैली लटकाता
नित औजा़र सजाता
न लटकती जिस दिन थैली
वो दिन बडा़ उमस भरा गुजरता
पुराने नये कितने ही जूते
जितनी सलवटें होती थी चेहरे पर
दरारें भी उतनी ही
जूते में नजर आती थी
क्षण भर में उग आते थे
जूतों के अनगिन चेहरे
मोचीराम के हाथ
काले पीले लाल मिट्टी से सने हुए
काँटों से छीले गरमी से झुलसे
पत्थरों ने टोंके से
बरसात ने भिंगोए
असमय टूट से
चलते चलते मालिक से रूठे से
जूते हाथ में लेता
नब्ज़ पकड़ कर दाम बताता
कर्म में फिर से रत हो जाता
यदा कदा सिक्कों की खनक से
खुरदरे हाथों में मुलायम एहसास होता
जब चढ़ते जूते फरमा पर
मोचीराम के हाथ
पहचान जाता जूते का दर्द
शामिल हो जाती थी उसकी पीड़ा
उनकी पीड़ा में
उसकी जड़ तले ही बनता था
जूतों की पीड़ा का मरहम
कभी ठोकता कील
तो कभी चिपकाता गोंद से
मोतीराम हर जूता चमकाता
अगले पड़ाव के लिए तत्पर हो जाता
पर इन दिनों वो कहीं नजर न आता
इंतजार लिये बैठा बूढ़ा वृक्ष
पगडण्डी को लगातार निहारता
जूतों की सलामती चमक देख
कुछ पल उनमें वो खो जाता
सोचता बिना मरम्मत के
न जाने ये कैसे अकड़ता
तभी अपना सा स्नेहिल स्पर्श
जड़ों के समीप आ बैठता
मोचीराम अपने -दोस्तों से बतियाता
बूढ़ा वृक्ष अपने कानों को
मोचीराम के पास फैलाता
भारी मन से मोचीराम अपनी
व्यथा सुनाता टूटने के कगार पर
है घर की जर्जर छत
दीवार से लगी कील
नहीं उठा पा रही है बोझ़
औजारों की बेरोज़गार थैली का
बदल गया समय और सोच
नहीं आते किसी मोचीराम के हाथ
टूटे हुए जूते संवरने के लिए
आने वाले इतिहास से नदारत होगी
मोतीराम और उसकी थैली
नहीं होगा कौतूहल का विषय ना ही
उनके लुप्त होने से भरेगी शोकसभायें
खाली पड़ी है आज बूढ़े वृक्ष की जड़
पेट में चुभती कील छोड़ गयी निशान
मोचीराम का स्पर्श होता गया दूर
धीरे-धीरे बहुत दूर दुनिया के मानचित्र से
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील, मार्मिक, भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील, मार्मिक, भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमोचीराम के जीवन और बरगद की छंव के सुंदर शब्द चित्र
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण औऱ मार्मिक
बधाई
आदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सम्वेदन शील कविता ।
यह सभी मोची, जमादार और सारे श्रमिक जिन्हें हम हीन मानते हैं कैस्त्व में हमारी सबसे बड़ी जरूरत हैं।
यदि ये ना हों तो हमारा सुविधा से रह पाना बहुत कठिन होगा पर हम इनका ध्यान नही रखते हैं, इनका तिरस्कार करते हैं ।
आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है। बहुत बहुत आभार।
*वास्तव
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमोचीराम के इर्द गिर्द बुनी गई सुंदर कविता .... !!
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक सराहनीय रचना
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