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उस साल की बारिश





उस साल की बारिश


उस साल की बारिश भी अजीब सी थी
मानों बूंद बूंद रो रही थी
न फूलों पर न पत्तियों पर
गिरती पानी की धार
सुखद अहसास  दे रही थी

महामारी के चपेट में
सारी दुनिया त्राहि-त्राहि
कर रही थी 

आंगन में जमा
बारीश का पानी
बंद दरवाज़े को ताकता
किसी बच्चे के
कागज़ की नाव को तरसता

खिड़की के उस पार
बैठी उदास प्रेमिका को
देख बारीश
उसे प्रियतम से
मिलवाने आतुर हो जाती

कितनी ही लाशें
उठ जाती 
अपनों से भी अधिक
उसे बारीश की बुंदे छूती
कफ़न से लिपटे रोती

उस साल की बारिश
वीरान सड़कों से
गुजरते समय
मन ही मन सोचती
ठेलेवाले सब्ज़ी वाले की
भूख़ की थैली ढूंढती

उस साल की बारीश गुजर गयी थी
नई बारीश के इंतजार में
एक बूढ़ी औरत
आंगन के पार आसमान को
नये सृजन के लिए निहार रही थी















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