पहली बारिश में
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निहार रही थी मै उसे
अपनी खिड़की से
लोहे की सलाखों के पीछे से
ठीक उसी समय और एक बारिश
शुरू होती है मेरी स्मृतियों में
जिसमें भीग रहा है
मेरे बचपन का गाँव
पोखरों में उछलती मछलियां
भर रही है मेरे मन को
खोल रही है गिरहों को
मिट्टी की देह से उठती सुगंध
ओसरे पर बैठी बूढ़ीं आँखे
आँगन किनारे लगे पौधे
बूंदों के संग रोम रोम खिलखिलाते
इठलाते
पहली बारिश की बूँदें
भिगों जाती हैं सबकुछ
पहली बारिश में
बुझ जाती थी प्यास
गाँव के एकलौते कुँऐ की
बच जाता था बेचारा
अस्मिताओं के अभिशाप से
वह भर जाता है उत्साह से
बुझाने औरों की प्यास
रात का सन्नाटा
घने बादलों का साया
उसे चीरती मेंढ़को की ध्वनियाँ
खेती के सीने पर बढ़ती जलधारायें
उसके संग अँकुरित बीज
जो भर रही है आस
मिटा रही है चिंता की रेखा़यें
टूटे छतों के नीचे सुस्ताते
किसानों के मन मस्तिष्क में
पहली बारिश में
बदल जाता है रंग
चेहरों का
स्मृतियों का
उम्मीदों का
पहली बारिश में।
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निहार रही थी मै उसे
अपनी खिड़की से
लोहे की सलाखों के पीछे से
ठीक उसी समय और एक बारिश
शुरू होती है मेरी स्मृतियों में
जिसमें भीग रहा है
मेरे बचपन का गाँव
पोखरों में उछलती मछलियां
भर रही है मेरे मन को
खोल रही है गिरहों को
मिट्टी की देह से उठती सुगंध
ओसरे पर बैठी बूढ़ीं आँखे
आँगन किनारे लगे पौधे
बूंदों के संग रोम रोम खिलखिलाते
इठलाते
पहली बारिश की बूँदें
भिगों जाती हैं सबकुछ
पहली बारिश में
बुझ जाती थी प्यास
गाँव के एकलौते कुँऐ की
बच जाता था बेचारा
अस्मिताओं के अभिशाप से
वह भर जाता है उत्साह से
बुझाने औरों की प्यास
रात का सन्नाटा
घने बादलों का साया
उसे चीरती मेंढ़को की ध्वनियाँ
खेती के सीने पर बढ़ती जलधारायें
उसके संग अँकुरित बीज
जो भर रही है आस
मिटा रही है चिंता की रेखा़यें
टूटे छतों के नीचे सुस्ताते
किसानों के मन मस्तिष्क में
पहली बारिश में
बदल जाता है रंग
चेहरों का
स्मृतियों का
उम्मीदों का
पहली बारिश में।
अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लोग पर आने के लिये धन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएं