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तुम्हारा इंतजार


मै कर रही हूँ तुम्हारा इंतजार
चाँद के गलने से लेकर
सूरज के ढलने तक
बंसत कि हर नयी पत्तियों  पर
लिख देती हूं तुमे चिट्ठियाँ
पत्ते झड़े अनगिनत मौसम बीते
अब मेरे शहर के हर वृक्ष
के तले
उग रही हैं तुमारे नाम कि दूब
पहुँचा रही हैं हवा संग
तुम्हें आने का संदेश
काली नदी के तट बैठकर
मैने बहाया हैं आँखों का काजल
अब तो नदी का भी सीना
भर गया है काले रंग से
मछलियाँ बैठती है मेरे पास आकर
और मूँद लेती आँखें
मानो कर रही हैं प्रार्थनाऍ
उस ईश से तुम्हारे लौटने की
मैने तो भरे थे इस रिश्ते मे रंग
प्रेम और सर्मपण के
बेखबर सी थी मैं
तुम्हारे मुट्ठी में बंद रंगो से
तरसती है मेरे मकान की दहलीज
तुम्हारे  तलवे के स्पर्श को
फिर घर बन इठलाने को
मंदिर के दिये तले है जमीं
मिन्नतों की ढेर सारी मन्नतें
तुम्हारा आना कुछ इस तरह से होगा
जैसे घने बीहड़  में शहनाई का बजना
किसी चंचल लड़की  के माथे
सिदूंर का सजना

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दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

उसे हर कोई नकार रहा था

इसलिए नहीं कि वह बेकार था  इसलिए कि वह  सबके राज जानता था  सबकी कलंक कथाओं का  वह एकमात्र गवाह था  किसी के भी मुखोटे से वह वक्त बेवक्त टकरा सकता था  इसीलिए वह नकारा गया  सभाओं से  मंचों से  उत्सवों से  पर रुको थोड़ा  वह व्यक्ति अपनी झोली में कुछ बुन रहा है शायद लोहे के धागे से बिखरे हुए सच को सजाने की  कवायद कर रहा है उसे देखो वह समय का सबसे ज़िंदा आदमी है।