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अलगाव

अलगाव ये शब्द 
एक अरसे से चल रहा है 
मेरे साथ 
यदाकदा आंखों से 
बहता ही रहता है 

आज सोचती हूंँ 
इतनी बार ये शब्द 
मेरी आंसुओं में बहा है 
फिर भी इसका अस्तित्व 
क्यों नहीं मिट रहा है ?

हर रिश्ते में ये शब्द 
इतनी शिद्दत के साथ 
क्यों अपनी जगह बन जाता है

शायद जिस दिन मैं 
पूर्ण रूप से 
टूट वृक्ष बन
मिट्टी से उखड़ कर 
मिटने की प्रार्थना करूंगी 
उस ईश से
उस  दिन ये  मेरे साथ ही दफ़न होगा 
जब सांसें छोड़ देगी देह का साथ

उस दिन मैं बिदा हो जाऊगी
अंतिम इच्छा के साथ
उम्रभर जीया जिन जिन 
अपनों से अलगाव का दुख
उनके आंखों से
एक भी आंसू न बहे
मेरे अलगाव में... 
मृत्यु संवाद नहीं करती है

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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