तुम्हारी जाने के पश्चात
मैंने गढ़ ली है
प्रेम की एक अलग सी दुनिया
जिसमें रात की टोकरी में
समय अपनी पैनी हथेलियों से
लिखता है चांद की पीठ पर मेरा विरह
तुम्हारे जाने के पश्चात
मैंने अपनी घर से
वो तमाम राहें कर दी अलग
जहां से आती थी
मेंहदी और सिंदूर की महक
तुम्हारे जाने के पच्छात
मैं नहीं गुजरी उन चौराहों से
जहां मुझे अकेली औरत कम
और एक देह अधिक समझा जाता रहा
तुम्हारे जाने के पश्चात
तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा के
दहलीज पर मैंने
एक पाषाण रख छोडा है अब
क्योंकि मुझे तुम्हारे लौटने से अधिक
मेरा खुद के पास अब रहना जरुरी लगने लगा है
अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएं