अभावों की जडें मेरे जीवन में
हर जगह पसरी है
घर के भीतर भी
मन के भीतर भी
लौट आती हुं मै
उन तमाम जगहों से
जब सपने मेरे
जेब पर भारी पड़ने
लगते हैं
बाहर का बंसत
और बारिशों की धार भी
मेरे मन का सुखापन
नहीं सिंच सका कभी
मन ने हमेशा जीया
किसी के मन से
न जुड़ने का आभाव
इसतरह शायद इस बारिश में भी
इन अभावों की जड़ों को
खूब पानी मिलेगा
फुलने फलने के लिए
अधूरे सपनो का
भार जेब पर पड़ती
रहेगी निरंतर
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