चाँद भी होता है गोल
जो अनगिनत तारों का प्रेमी हैं
सूरज भी होता है गोल
जो हर दम धरा को
करता है साराबोर
पानी की बुँदे भी
होती हैं गोल जो
नवजीवन से सृष्टि को
करती हैं अंकुरित
आंखों की पुतलियों के
गोल में चाहे अनचाहे
भाव छुपे होते हैं
मेरी गोल गुलाबी बिंदी में
बसा हुआ है
सौंदर्य का अतिरेक
मानो वह बिंदी नहीं पूरे
हो ब्रह्मांड का विस्तार
उसमें भरी हुई हैं
संस्कृति और
वह प्रतीक है मेरे
सम्मान और स्वाभिमान का
बिंदी में एक नहीं कहीं भाव
छुपे हुए हैं प्यार का प्रतीक बनके
यह बिंदी उभरते हैं
कभी करती निज समर्पणा
अनगिनत सांसें समायीं हैं
इस बिंदी में
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें