नित्य मेरी बालकनी में
मिलते हैं दो प्रेमी
दृश्य अद्धभुत होता है
रोज रात को चाँद
निहारता है मेरी तुलसी को
फिर होता है शुरू
अठखेलियों का खेल,
शिकायत तुलसी की
चाँद से
वो क्यों देर से आता है अक्सर
प्रेम में
इन मीठी शिकायतों का मर्म
समझता है चाँद,
मुस्कुराकर, तुलसी का श्रृंगार
निहारता हैं चाँद
पवन संग झुक जाती है
तुलसी शर्माकर,
बालकनी बैठकर
अक्सर सोचती हूं
दोनों की दुरी को
नापने का करती हूँ
विफल प्रयास,
उनके मिलने का भी
होता है मेरा अट्टाहास
लगती है विफलता
कई बार हाथ
फिर भी,
रोज आता है चाँद
रोज शरमाती है तुलसी
रोज एक नयी जुदाई
नये मिलन के लिये।
ह
बहुत प्यारी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सरस रचना
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