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औरत

जहाँ जन्मी तूँ,शब्दों को
बोली मिली
खोल के पंख े,बगिया
में फूल खिली ।

तुलसी लगाई तूने  पिता के
अॉगन में
जल अर्पण किया पति के
प्रांगण में,

जब जब तेरे उदर में अंश
पला पति का वंश बढ़ा
पर बाँझपन का भार तूने
ही ढोया ।
अर्पित कर तुम जीवन
अपना,
सोच रही क्या पाया ,
क्या खोया ।

दरवाजे पे तेरे नाम का
तख्त न हुआ,
फिर भी पूरा जीवन इसी
बेनाम घर को दिया ।

डाकिया कभी उसको ढूंढ
कर नहीं आता,
फिर भी उसे उसका ,
इन्तजार रहता ।

अनगिनत किरदारो में जीती
है तू
हर किरदार में किरायेदार
रहती है तू ।


टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर पंक्तियाँ। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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