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स्त्रियाँ

स्त्रियाँ चखी  जाती हैं  किसी व्यंजन की तरह  उन्हें उछाला जाता है  हवा में किसी सिक्के की तरह  उन्हें परखा जाता है  किसी वस्तु की तरह  उन्हें आजमाया जाता है  किसी जडीबुटी की तरह उन्हें बसाया जाता है  किसी शहर की तरह  और खाली हाथ लौटया जाता है  किसी भिक्षूणी की तरह  पर आने वाली संभावनाओं की  बारिश में उगेंगे कुछ ऐसी स्रियाँ   जो हवा में उछाले सिक्के को  अपने हथेलियों पर धरकर मन के अनुसार उस सिक्के का  हिसाब तय करेगी 

प्रेम

प्रेम प्रेम वो नहीं जो तुमने किया अपनी सुविधा के अनुसार बल्कि प्रेम वो था  जो तुम्हारे पास समय की  कमी के कारण तुम्हारे आफिस की फाइलों में बंद रहा  और मैं दिन महीने साल दर साल प्रतीक्षारत रही अक्सर शाम चाय चढ़ाते समय जब मैं तुम्हे पूछा करती थी  आज कितनी बार चाय हो गई तुम झूठ कहते थे हर बार पर पूरे दिन की दिनचर्या में जितनी बार तुम्हें याद करती प्रत्येक बार एक बूंद चाय की  तुम्हारे होंठ से मेरे होंठों तक का  सफर तय करती अलमारी में है आज भी खाली लाल रंग की साड़ी की जगह  जितने फिक्र से टटोलती थी  तुम्हारा बटुवा  उतनी ही बेफिक्री से प्रत्येक बार मांगती थी तुमसे हर त्यौहार में घुले रंग की भाँति पहनी साड़ी सी तुम्हारे प्रिय रंगों को बदलता देख  मैं हर बार मुस्कुराती थी  मन ही मन प्रेम वह था जो मैंने  अभावों में भी है जिया तुम्हारे छोड़ कर चले जाने के बाद भी  उपहार में तुम्हारे दिये हुए  आंसुओं को   तुम्हारी बदनामी के भय से  कभी अपनी आंखों से बहने नहीं दिया  यद्यपि हृदय से उठती हुंकार पर हर बार मेरे होठों पर विरह का एक *गीत* रख दिया और मैने उसे ही अपना जीवन का संगीत मान लिया

जीवन यात्रा

मेरा कहने लायक  बहुत कम था मेरे पास  कुछ सालों बाद  तुम आए तुमने सदा कहां  मुझे देख सकती हो तुम हर उस रिश्ते में जो तुम्हारे जीवन की बंजरता पर कभी नहीं उग आये कुछ सालों तक मेरी यात्रा में  बहुत कुछ शामिल रहा  मेरा कहने लायक  एक दिन तुम बीच यात्रा में  आगे चले गए और मैं  छुटती गई तुम्हारे पास से  थोड़ी-थोड़ी और एक दिन  मैंने महसूस किया  आज मेरे पास मेरा कहने लायक  मैं भी नहीं बची हूँ तब तक तुम भी आगे के रास्ते से  ओझल होते गए और  मेरा  आगे का रास्ता  बहुत बड़ी खाई में तब्दील हो गया  अब मेरा कहने लायक मेरे पास  चंद सांसें हैं जो मृत्यु की प्रतीक्षा में लीन है