१) स्वार्थ की राजनीति को पूरा करने के लिए इन सब नेताओं ने हमसे वसूली हैं एक अंगूठे की कीमत और कर दिया है इतिहास,वर्तमान और भविष्य अपाहिज २) राजनीति में विरोधी वह मदारी हैं जो कांच के दरवाजे के अंदर बैठकर उस पार का दृश्य देखता है और जब जनता सूखे पत्तों की तरह धूप में कड़क(तिलमिला) हो जाती हैं तब उनकी हड्डियों को चुल्हे में सरकाकर उस पर बिना बर्तन रखे तमाशा देखता है ३) हे मनुज तूने सभ्यता की देह पर असभ्यता का तांडव रचा दिया है तेरी कालाबाजारी से तेरी भ्रष्ट राजनीति से धू, धू करके जलती चिताओं ने आसमान तक की आंखें भींगो दी इन लाशों से जन्मी कालिख़ तेरे आने वाली अनगिनत पीढियों के मस्तिष्क पर स्थापित गहरा कलंक है और मेरा अपाहिज मौन है ४) जनता ने नेताओं को रेशम का कीड़ा समझा है जो सिहासन के हरियाली पर बैठकर उनके लिए उम्मीदों का वस्त्र बुनेगा पर राजनीति में जनता तो केवल वह मखमली धागा है जिसे पकड़ कर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा जाता है