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तुम्हारी ख़बर

तुम्हारी खबर
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तुम्हारी ख़बर ख़बरी की जुबानी
पहुँच रही है संसद के भीतर
तुम्हारे छालों से भरे पैर
छु सकती है हर डगर हर शहर
पर ठहर नहीं सकते तुम
राजपथ के आलिशान सड़कों पर
वही सड़क वही संसद तुम्हारे लिए जहां
कागजों पर रोटी पकाकर आंकड़ों से
सेंकी जा रही हैं निरंतर
अच्छा हुआ दम तोड़ा तूने पक्की सड़क पर
कच्ची सड़क पर पहुंचते तो शायद
सरकारी बहिखातें से झाड़ें जाते
और निकलते निकलते तुम
  • लाश के मुआवजे से वंचित रह जाते

टिप्पणियाँ

  1. तुम्हारी ख़बर ख़बरी की जुबानी
    पहुँच रही है संसद के भीतर
    तुम्हारे छालों से भरे पैर
    छु सकती है हर डगर हर शहर

    बहूत कुछ कहे गई ये पंक्तियाँ

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  2. लाजवाब ,बेहतरीन रचना ,नमस्कार

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