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अनाथ


अनाथ के हिस्से आता रहा हमेशा
बचा हुआ प्रेम, रिश्ते, रोटी
ठीक उसी तरह होती है उसकी स्थिति
चौराहे पर नजर उतारकर रखे सामान की  तरह
मानो दहलीज को बचाया गया हो
किसी काले साये के आने से
गर्भ की नाल कटने के बाद भी
दरबदर वो घूमता है
ढूंढने उस नाल की नमी
अनाथ टूटे वृक्ष की तरह
आसमान की तरफ ताकता रहता है
दो बूंद स्नेहसिक्त वर्षा के लिये
सतत अपनी पीठ पर ढोता है
मरे हुये रिश्ते का पाषाणी अवशेष
बाहर का शोर ऊंचे से ऊंचा हो तो भी
नहीं दे पाता है मात
उसके मन के अंदर के खालीपन को
उसकी उम्र कपास की तरह दौड़ती है
और पर्वत जैसा भार सहती है
दर्द की थैली पर रख देता है वो
एक बोरी मुस्कान
और बाँटता रहता है शहंशाह की तरह

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