दिसंबर के जाने से या फिर जनवरी के आने से फरवरी के ठहरने से भी क्या होगा ? भाग्य में लिखा है तुम्हारा न मिलना और मेरा न लौटना कैलेंडर केवल कुछ पन्नों का महज एक दस्तावेज है मेरे लिए जिसकी हर तारिख पे नमक का हिसाब आज भी बाकी है
समय बहुत विकट था लेकिन उतना भी कठिन नहीं था कि तुम भाग गए सबसे पहले जो रिश्तों के कतार में सबसे आगे होने का दावा करता रहा | मैं बुरे समय के कारण नहीं मारी गई बल्कि इसलिए मारी गई थी मेरे हृदय के गर्भ में जहां तुम्हारे लिए अनुराग का जन्म हुआ था उस हृदय के गर्भस्थली में भारी रक्तपात हुआ था उस दिन और मेरी देह क्षीणतर होती गई थी | समय बहुत कठिन था पर उतना भी बुरा नहीं था कि मैं बच नहीं सकती थी मुझे तो मेरे ह्रदय के गर्भ में जन्मे प्रेम ने मार डाला जो तुम्हारे लिए था |
मरे हुए को मारकर खुद को बादशाह घोषित करना बहुत आसान है और ज्यादातर लड़ाईयां कमजोर के साथ ही लड़ी जा रही है और ताकतवर के तलवे चाटे जा रहे हैं ये समय चापलूसीयो के दूकानें सजने का समय है
घर के भीतर जभी पुकारा मैने उसे प्रत्येक बार खाली आती रही मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब सामने वाली कुर्सी खाली रही हमेशा देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है जहाँ से लौटना असभव बना है अब
अक्सर मन में ख्याल आता है मृत्यु के बाद मैं कहां बची रहूंगी सबसे अधिक उन हथेलियां पर जहाँ देती रही मैं दान जरूरतमंदों को समय असमय पर और कहती रहती थी बड़ी मां दिन के बारह बजे के बाद नहीं दिया जाता है दान पर प्रतिउत्तर न देकर मैंने दिया अन्न तो कभी धन क्योंकि समय की मांग थी घड़ी के भीतर का समय और बाहर का समय कभी एक जैसा नहीं लगा मुझे क्या उन हथेलियां पर मैं बची रहूंगी ? या मैं मरने के बाद सबसे अधिक बची रहूंगी उस मिट्टी में जिसने चखा है स्वाद मेरे गर्भनाल का और मेरे मरने तक वो मिट्टी करती रही इंतजार मेरे लौटने का क्या मेरी मृत्यु के बाद मुझे बचने दिया जाएगा उस मिट्टी में सबसे अधिक ? या मृत्यु के बाद मैं बची रहूंगी उस पुरुष के हृदय में ठीक उसी चिट्ठी की तरह जो डाक के बक्से में डाली तो गई पर हर डाकियें के हाथ से प्रत्येक बार छूटती रही और अंधेरे तहखाना में सालों पड़ी रही जर्जर होने के पश्चात भी बची रही उ...
हर रिश्ते में दो लोग होते हैं एक वफादार एक बेवफा वफादार रिश्ता निभाने की बातें करता है बेवफा बीच रास्ते में छोड़कर जाने की बातें करता है वफादार रुक जाने के लिए सौ कसमें देता है वहीं बेवफा वफादार को इतना मजबूर कर देता है कि वफादार लौट जाता है और बेवफा आगे निकल जाता है रिश्ते की यहीं कहानी होती है अक्सर
समंदर ने पानी उधार लिया है नदियों से जैसे उधार लेते हैं कुछ एक पिता बेटियों से उनकी संपत्ति और अधिकार के साथ चलाते हैं पितृसत्ता का साम्राज्य नदियाँ विलुप्त हो रही हैं समंदर को भविष्य की बंजरता का आभास फिर भी नहीं हो रहा है
मछलियां नहीं लौटती है पानी के पास कभी जाल में फंसने के पश्चात आदमी नहीं लौटता है जीवन के पास कभी मृत्यु को वरण करने के पश्चात इसलिए लौट आई थी वो उन सभी जगह पर हो सकता है उसका लौटना अंतिम बार हो क्यों कि उसका जाना तय था
पावस के दिनों में कुएंँ में उडेली गगरी क्षण भर में अपनी भरी देह लिए आती है लौट वे दिन प्यास से मर जाने के नहीं तृप्ति के होते हैं मोल नहीं खटकता जीवन का तब नजरअंदाज करते हैं हम कितनी आदमियत बची है आदमी में वो तो तब खटकता है जब सुख जाते हैं कुएँ धरती तपती देह लेकर रोती हैं मर जाती है पुतलियाँ मछलियों की वे दिन होते हैं दुख के और अतृप्ति के और तब खटकती है इर्दगिर्द मौजूद आदमियों के भीतर बची है कितने आदमीयत उल्लास नहीं सताप परिभाषित करता है इंसानियत
भले आप रोज ना लिखें एक पन्ना कहानी का एक पंक्ति कविता एक अध्याय उपन्यास पर नित्य जगाए रखना आत्मा के भीतर बसा इंसान क्योंकि इस दुर्दिंन समय में कागज़ गिरवाये शब्दों से अधिक जरूरी है, दबती न्याय की पूकार पर तुम्हारा पेपरवेट बनना
बहुत से सपने मर जाते हैं मन के दराज़ के भीतर कुछ तो आत्मा से जुड़े होते हैं वहां पडे़ होते है शहरों के पत्ते नामों के साथ लगे सर्वनाम भी और ताउम्र इन सपनों के पार्थिव शरीर उठाये हम चलते हैं मृत्युशय्या पर हम अकेले नहीं हमारे साथ जलता हैं वो सब जिन्होंने ताउम्र जलाया होता है हमें बिना आग बिना जलावन के