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फ़रवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कागजी फूल

तुम नहीं थक सकती  ना ही तुम हो सकती हो उदास  तुम्हारे थकने से  कंधों पर मौजूद दायित्व का भार  लुढ़ककर आ जाएगा नीचे  टूट सकती है तुम्हारी रीढ़ और  समय के पहले तुम्हारे रीढ़ का टूटना  तुम्हारे श्रम के नीवं पर  जो टिका है घर उसका ढ़हना होगा  तुम नहीं हो सकती हो उदास और  हो भी जाती हो उदास  तो उगा देना अपने चेहरे पर  वो कागजी फूल  जिसका कोई मौसम नहीं होता हैं थकी हुई देह लेकर भी चलना तुम  उस जगह तक जहां जरूरत है  तुम्हारी प्रार्थनाओं की और  उदास मन को छोड़ देना  थोड़ी देर के लिए  कागजी फूलों के बगीचे में  जिन्होंने अपने होने को कभी  दर्ज नहीं किया तुम्हारे अपाहिज दिनों में भी  पर तुम निभाना उन सब की इच्छाओं के  को क्योंकि निस्वार्थ को आते-आते अभी समय है

नदी

सूरज के अस्त होने से  छा जाता है नदी के देह पर एक सन्नाटा मन में भर जाती एक उदासीनता  उसका अल्हडपन ढूंढती रहती है एक तलहटी जिसकी गहराई मे जा बैठती है वह  मौन हो ।

प्रिय

प्रिय तुम कभी नहीं बन सके एक अच्छे प्रेमी पर एक बेहतरीन मार्गदर्शक जरूर बने तुम्हारी जटिल से जटिल राजनीति और अर्थशास्त्र का ज्ञान देख मैं हमेशा अचंभित रही पर मेरे ह्रदय में बसा सबसे सरल प्यार तुम कभी समझ नहीं सके मजदूर के उदासी का रंग   अपनी क़लम में भरकर तुमने क्रांति लिखी पर मेरी आंखो में तैरता विरह का रंग तुम कभी पढ़ नहीं सके प्रिय

सवाल ?

ठीक उसी समय रहा अंधेरा मेरी दहलीज पर जब आसमान पूर्ण चंद्र से सुशोभित रहा ठीक उसी समय रंग रहे फीके मेरे चेहरे पर के जब इर्द गिर्द उड़ता रहा रंग त्योहारों का ठीक उसी समय मैं उपवास पर निकल गई जब अनेक मिष्ठानों से भरी रही मेरी या फिर तेरी रसोई ठीक उसी समय मैं तपती रही जब पूरी सृष्टि मेघ में नहाती रही मेरा इतना भर सवाल है तुमसे आज ठीक उसी समय तुमने मुझे उदास क्यों किया जब इर्द गिर्द हर्ष पसरा था ? ठीक उसी समय तुमने मुझे अनछुवा क्यों रखा जब मेरी देह आखिरी बंसत की आहट से विचलित हो रही थी? ठीक उसी समय तुमने क्यों मेरे शब्दों के जगह पर रख दिये आंसुओं के जलाशय जब मैं चाहती थी एक खुबसूरत भाषा में कर दूं अपना प्रेम निवेदन जैसे अभी अभी एक खिलखिलाते प्रेमी जोड़ने चुम लिया है एक दुसरे का माथा और अंबर झुक गया लाल रंग की काया ओढे