सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यही होता आ रहा है

मुझे पता  था  घूम फिर कर मुझ पर ही आएगा  रिश्तें के टूटने का दोष  और यह भी पता है मुझे दोषी करार करने के लिए  उसने नहीं चली होगी कोही चाल  न हीं छपा होगा  विज्ञापन  मेरे दोषों के केटलॉग का  क्यों कि उसे यकीन है  समाज के ठेंकेदारों के  पहरेदारी पर

कर दिया है तुम्हें मुक्त

मैं तुम्हे मुक्त कर रही हूँ इस रिश्ते की डोर से कही बार मैंने महसूस किया है  तुम्हारी पीठ पर  मेरा अदृ्श्य बोझ इन दिनों अधिक बढ़ रहा है हम दोंनो के बीच  कदमों का फासला भी कोशिश करती हूँ  कह दूँ  तुम्हारे कानों में  वही प्रेम के मंत्र जो प्रथम मुलाकात में तुमने अनायास ही घोले थे मेरे कानों  में और समा गये थे तुम मेरे रोम -रोम में मैं स्वार्थी तो थी ही पर थोड़ी बेफ़िक्र भी हो गई थी तुम्हारी चाहत में दिन-रात तुम्हारे ही इर्द -गिर्द चाहती थी मौजुदगी  जब तुम तल्लीन हो जाते थे अपने कर्मो में मैं रहती थी प्रयासरत अपनी मौजूदगी का एहसास  कराने में जब कभी पड़ता था  तुम्हारे माथे पर बल और सिमट जाती थी  ललाट की सीधी सपाट रेखाएँ मैं रख देती थी धीरे से  तुम्हारे गम्भीर होंठो पर अपनी उँगलियों को मेरा रूठना तो सिर्फ इसलिए होता था कि मैं तैरती रहूँ तुम्हारे मनाने तक  तुम्हारी ही श्वास एवं प्रच्छवास की उन्नत होती तरंगों पर जिम्मेदारियों के चक्र में जब जम जाती थी थकावट की उमस भरी धूप और शिथिल पड़ जाती थी मैं तुम मुझे उभारते बिना हाथों का स्पर्श किये और रख़ देते थे मेरे कदमों के नीचे एक तह हौसले की पर इस

तुलसी

मुल लेखक- गोकुळदास प्रभू तुळशी कितें म्हणटा अनुवादक - सरिता सैल तुलसी   श्रावण मास के दिन थे। बाहर बारिश हो रही थी।  पानी की तेज धार किसी हठीले बच्चे के रोने के स्वर जैसी लग रही थी।  कुछ देर वह बारिश को निहारता रहा। आज पूरा दिन वो घर के भीतर ही बैठा रहा इसलिए कुछ देर बाहर खुली हवा में घूम आने का उसने निर्णय किया।  बाहर जाने के लिए उसे कपड़े बदलते देख  माँ ने पूछा, " बाहर जा रहा है क्या?" "हां " "तो एक काम करते आना। भटजी के घर जाकर उन्हें याद दिला देना कि कल श्राद्ध है।" परसों माँ ने  ही फोन पर याद दिलाया था कि पिता जी का श्राद्ध है। मांँ आज भी हम सब भाई बहनों के बीच पुल का काम करती है। फोन कर सबकी खब़र लेते रहना, नागपंचमी, गोकुलाष्टमी पर बुलाना, सब मां ही करती है। "मेले में अब केवल बारह दिन ही बचे हैं। तुम कब आ रहे हो? साथ में बच्चों और बहू को लेकर आना। सबसे मिलना भी हो जाएगा।" इसी तरह वो बाकी भाई- बहनों को भी बुलाती है। सबको एक समय पर एक जगह इकट्ठा कर मिलाने का काम मांँ हमेशा से करती आयी है। " भटजी को चार-पांच दिन पहले कहा था। अब तक भूल गये

रिश्तें

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है ,और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को केवल किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तें को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | एक संवेदनशील और ईमानदार व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता है  और ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटनभरा समय और तकलीफ ही आती है |माना की इस तेज रफ्तार जीवन शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं