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तना हुआ वृक्ष

तुम देख रही हो ना नदी के तट पर नारियल के तने हुए वृक्ष असंख्य वे खड़े रहते हैं नदी के लिए हर अच्छे-बुरे मौसम में होना चाहता हूं मैं भी नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ तुम्हारे लिए जीवन के सभी मौसम में तुम बनो नदी म ैं  बनूं नारियल का वृक्ष झूमता हुआ / तना  हुआ २३/०१/२०१७
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वो एक आवाज

कोई सौ आवाजें दें तो कम से कम एक आवाज़ पर तो मुड़ लिया कीजिए किसे पता सांसों की या रिश्तों की आखिरी आवाज़ न बन जाए वो एक आवाज़।

रिश्तें

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है ,और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को केवल किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तें को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | एक संवेदनशील और ईमानदार व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता है  और ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटनभरा समय और तकलीफ ही आती है |माना की इस तेज रफ्तार जीवन शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं 

बेटे के आस में जन्मी बेटियांँ

बेटे के आस में  पैदा की जाती रही बेटियाँ  वे बेटियांँ किसी बेल से  समय के पहले तोड़े हुए फल की तरह  अपरिपक्व मन से चली गई  और जिस दिन वे बेटियांँ  पिता और पति के घर की बिच वाली देहरीं पर खड़ीं रही  एक कतरा आंसू के साथ  उस दिन पिता ने अपनी आंखें  पीठ पर लगा दी और  माँ ने दरवाजे पर जमी  पराई भीड़  समझकर सांकल चढ़ा दी बेटे के आस में जन्मी बेटियांँ उदास मन से बार-बार लौटती रही 

एक चिट्ठी

एक चिट्ठी गुम नाम पते पर  लिखनी है मुझे  उसके नाम जिसने  गिरवा दिया था  मेरे माथे पर  एक रंग सिंदूरी  और आती रही उससे गंध बरसों तक जख्मों की    जिसने मेरे उन्नत शीश को  झुका दिया अनगिनत बार  मेरे आंखों में बसे सुनहरे सपनों को  करके छिन्नतार  बहता रहा तेजाब बरसों तक रखता रहा मेरी अंजूरी में  भंभकते अंगारे और  वर्षों तक मैं देती रही  क्षमा का दान उसे  हर वो सप्तपदी  उसके साथ तय की थी  वह अभिशाप बन  मेरे बदन पर रेंगती  रही   विषयले सांप समान  उन सभी क्षणों को  मैं रखना चाहती हूं  चिट्ठी में और छोड़ आना चाहती हूं  गांव की सीमा पर  बड़ी मां के उस विश्वास के साथ  अब तुम्हें किसी की नजर नहीं लगेगी  भेजनी है मुझे एक चिट्ठी उस गुमनाम पते पर

तना हुआ वृक्ष

तुम देख रही हो ना नदी के तट पर नारियल के तने हुए वृक्ष असंख्य वे खड़े रहते हैं नदी के लिए हर अच्छे-बुरे मौसम में होना चाहता हूं मैं भी नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ तुम्हारे लिए जीवन के सभी मौसम में तुम बनो नदी म ैं  बनूं नारियल का वृक्ष झूमता हुआ / तना  हुआ २३/०१/२०१७

कागजी फूल

तुम नहीं थक सकती  ना ही तुम हो सकती हो उदास  तुम्हारे थकने से  कंधों पर मौजूद दायित्व का भार  लुढ़ककर आ जाएगा नीचे  टूट सकती है तुम्हारी रीढ़ और  समय के पहले तुम्हारे रीढ़ का टूटना  तुम्हारे श्रम के नीवं पर  जो टिका है घर उसका ढ़हना होगा  तुम नहीं हो सकती हो उदास और  हो भी जाती हो उदास  तो उगा देना अपने चेहरे पर  वो कागजी फूल  जिसका कोई मौसम नहीं होता हैं थकी हुई देह लेकर भी चलना तुम  उस जगह तक जहां जरूरत है  तुम्हारी प्रार्थनाओं की और  उदास मन को छोड़ देना  थोड़ी देर के लिए  कागजी फूलों के बगीचे में  जिन्होंने अपने होने को कभी  दर्ज नहीं किया तुम्हारे अपाहिज दिनों में भी  पर तुम निभाना उन सब की इच्छाओं के  को क्योंकि निस्वार्थ को आते-आते अभी समय है